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भास्वत्याम् । सं० टी०-अर्कोन चन्द्राच्छरवेदहीनात् ततोऽपि शेषाच शराब्धिलब्धं सप्तावशेष बवाद्यं करणं भवति तन्नाडिकाद्या तिथिवद् भवन्ति ॥ १४ ॥ __भा० टी०-स्पष्ट चन्द्रमा में स्पष्ट सूर्यको हीन करके फिर उसमें ४५ को घटाकर उसमें ४५ का भाग देनेसे जो लब्ध मिलै उसमें ७ का भाग देनेसे शेष बवादिगत करण होता है, पूर्वभाग शेष को हरमें घटाकर वर्तमान करण की भुक्त भोग्य घड़ी तिथि की घड़ी की रीति से साधै ॥ १४ ॥
उदाहरण-स्फुट चन्द्र १३६ ० । ४९।२४ में स्फुटसूर्य २०० । ४४ । ४५ को घटाया तो ११६ ० १ ४ । ३९ बचे इस में ४५ और घटाया तो १११५ । ४ । ३९ वचे इसमें ४५ का भाग दिया तो फल २४ मिले इसमें ७ का भाग दिया तो शेष गतकरण ३ रा कौलव मिला, पूर्वशेष ३५।४।३९ को ६० से गुणा करके सजाती किया तो भाज्य १२६२७९ हुआ, चन्द्र गति ९४ । • में सूर्य गति ७ । १६ को होन किया तो ८६ । ४४ हुए इस को ६० से गुणा करके सजाती किया तो भाजक ५२०४ हुआ, इसका भाज्य १२६२७९ में भाग दिया तो वर्तमान तैतिल करण की मुक्त घड़ी आदि २४।१६ मिलीं । फिर पूर्वशेष ३५।४।३९ को हर ४५ में हीन किया तो शेष ९।१५।२९ बचे इस को सजाती करने से माज्य ३५७२१ हुआ इस में माजक ५२०४ का माग देने से फल वर्तमान तैतिल करण की भोग्य घड़ी आदि ६ । ५२ मिली, वर्तमान करण का गत ऐष्य योग २१ । हुआ ।। १४॥
स्थिर करणाःपरे दले कृष्ण चतुर्दशी या
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