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भास्वत्याम् ।
से गुणि चन्द्र केन्द्र ध्रुवा में युत करके फिर दिन गण में ५० का भाग देने से जो फल मिले उस को भी उसी में युक्त करें फिर उसको २७५६ से शेषित करने से शेष तत् कालिक चन्द्र केन्द्र होता है फिर उस को वीज और देशान्तर से संस्कार करने पर वीज देशान्तर संस्कारित चन्द्र केन्द्र होता है । केन्द्र में १०० का भाग देने से जो लब्ध मिलै वही संख्या वाला भुक्त खंडा और उस के आगे का अङ्क भोग्य खण्डा होता है, भुक्त भोग्य खण्डा का अन्तर करके शेष को अन्तर से गुणा कर फिर उसमें १०० का भाग देने से जो लब्ध मिले उसे भुक्त खण्डा में युक्त करै वाद २४५७ का भाग देने से जो शेष है उसमें उस को युत करने से स्पष्ट चन्द्र होता है। (सुगमता के लिये संस्कृत टीका स भाषा टीका में भेद किया गया है ) ॥७॥८॥९॥
चन्द्रखण्डाङ्काःइन्दोः खरूपाग्निरसाः खचन्द्रा
नृपा जिनाः पञ्चगुणा रसाब्धयः। षष्ठिः शरागाः कुनवाष्टकाष्ठाः
षड्भानवो राममनुर्नवाहाः ॥१०॥ पञ्चाम्बुदा खाङ्कभुवो द्विखाश्चि _ विश्वाश्चि जात्यश्वि खरामदस्राः। पञ्चाग्निहग् गोऽग्नियमाः कुसिद्धा
नेत्राब्धिहग् वह्निजिनास्त्रिसिद्धाः॥११॥
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