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भास्वत्याम् ।
सूर्य स्पष्ट विधिःसूर्ये स्वरघ्नास्तिथयः प्रदेयाः
पृथक् शताप्ता: क्रमशश्चखण्डाः। शेषाच्चभुक्तोनितभोग्यनिघ्नाच्छताप्त
युक्तोऽप्यधिकः स्फुटः स्यात् ॥३॥
सं० टी०-स्वरघ्नाः सप्तगुणिताः तिथयः सूर्यध्रुवके प्रदेया योजनीया (ततो वीजदेशान्तराभ्यां संस्कारितः) एवं कृतेसति मध्यम सूर्यो भवति, मध्यमसूर्यः पृथक् स्थानद्वये संस्थाप्येकत्र शताप्ताः शतभागेन क्रमशः खण्डा लभ्यते तदनेभोग्यः शेषाच्चभुक्तोनित भोग्यनिनाच्छताप्त युक्तः-अर्थाद्भुक्तभोग्य योरन्तरेण शतभागशेषं गुणितं शतेन विभाजितं प्राप्तफलं भुक्तखण्डके संयोज्य मध्यमार्के योजयेद् योजते सति-अधिकः स्फुटः स्यात् स्पष्ट सूर्यो भवतीति ॥ ३ ॥
भा० टी०-दिन गण को ७ से गुणा करके उसमें सूर्य के ध्रुवा को युक्त करै फिरि देशान्तर और बीन से संस्कार करके दो स्थान में स्थापित करै एक स्थान में १०० का भाग देने से जो फल मिलै उतने संख्या वाले कोष्ट के अङ्क को और उसके अग्रिम कोष्ठ के अंक को अन्तर करै फिर शेष को अन्तर से गुणिके १०० का भाग देने से जो फल मिले उस को गत खण्डा में युक्त करके फिर उसको दूसरे जगह धरे हुए अंक में युक्त करने से स्पष्ट सूर्य होता है ।। ३ ॥
Aho ! Shrutgyanam