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प्रहध्रुवाधिकारः । यत्फलंतत्तत् क्रमेण चन्द्राष्टतत्वाब्धिशशाङ्काशिष्टम् शेषितं कुजादेवीजं भवति ॥ ७ ॥
भा० टी०-शास्त्राब्द को १२।२०।१५।५।४ से गुणि ८०० का भाग देने से जो लब्ध प्राप्त होवै उसको १।८।२५।४।१ से शेषित करने से क्रमशः मङ्गल आदि का कलादि वीज होता है ॥७॥
उदाहरण-शास्त्राब्द ८१२ को १२ से गुणा तो ९७४४ हुए इस में ८०० का भाग दिया तो लब्ध १२।११ मिले ॥
शास्त्राब्द ८१२ को २० से गुणा तो १६२४० हुए इस में ८८० का भाग दिया तो लब्ध २०११८ मिले ॥
शास्त्राब्द ८१२ को १५ से गुणा तो १२१८० हुए इस में ८०० का भाग दिया तो लब्ध १५।१३ मिले ॥
शास्त्राब्द ८१२ को ५० से गुणा तो ४०६०० हुए इस में ८०० का भाग दिया तो लब्ध ५०।४५ मिले ॥
शास्त्राब्द ८१२ को ४ से गणा तो ३२४८ हुए इसमें ८०० का भाग दिया तो लब्ध ४।३ मिले ॥
मङ्गल के लब्ध १२।११ को १ से शेषित किया तो भौम का कलादि वीज ११ हुआ ॥
बुध के लब्ध २०१८ को ८ से शेषितकिया तो बुध का कलादि चीज ४।१८ हुआ ॥
वृहस्पति के लब्ध १९।१३ को २५ से शेषित किया तो वृहस्पति का कलादि वीज १५।१३ हुआ ॥
शुक्र के लब्ध ५०१४५ को ४ से शेषित किया तो शुक्र का कलादि वीज २१४५ हुआ ॥
शनि के लब्ध ४१३ को १ से शेषित किया तो शनि का कलादि चीज १३ हुआ ।। ७ ॥
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