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प्रहध्रुवाधिकारः। इष्ट शाका १८५७ के बाद होने पर इष्ट खाका में १८५७ पुस्तकीय शाका घटावै जब तक पुस्तकीय शक १८८१ न आव इसके वाद भी इसी प्रकार क्रिया करै और इष्ट शाका १८५७ है और पुस्तकीय शाका भी १८५७ ही है तो इसमें इस के पहिले के पुस्तकीय शाका १८३३ को हीन किया तो शेष २४ बचे पुस्तकीय शाका १८३३ के नीचे का अंक ५६।९।१६।२७१५१ है और शष २४ के नीचे का अंक २४।३।११।२२।३३ है, इन दानों का जोग किया तो संवत्मर वर्षादिक २१०।२७।५०।२४ हुए, और इष्ट शाका १८५७ में पुस्तकीय शाका १८५७ को घटाया तो शेष ० बचा पुस्तकीय शाका १८५७ के नीचे का अंक २१।०।२७।५ ० २४ है, और शून्य के अभाव से अंक का भी अभाव है, इससे संवत्सर वर्षादिक २१।०।२७।१०।२४ हुए ॥
भौमवैवविधिःशास्त्राब्दपिण्डो वसुवह्निषट्नः सशीतरश्मीज्वलनो महीजः । शताहतद्वादशराशिचक्रः शेषोऽब्धिवाणैश्च युतोऽब्दद्वन्दात्॥४॥
सं० टी०-शास्त्राब्दपिण्डो वसुवह्निषट्नः गुणितः सः शीतरश्मीज्वलनेन सहित एकत्रिंशद् युक्तश्च पुनरब्दपिण्डादब्धिवाणैः प्राप्त फलेन युतश्शताहतद्वादशराशि चक्रः द्वादशशतेन शेषितः महीजः, भौमाभवति ॥४॥
भा० टी०-शास्त्राब्द को ६३८ से गुणि उसमें ३१ युत करे फिर शास्त्राब्द में ५४ का भाम देने से जो लब्ध मिले
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