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भास्वत्याम् ।
शताहता हर्दलतस्तदाप्तमहर्गतैष्यो घटिकादिकालः ॥ ५ ॥
सं० टी० - दशन्नादश गुणिता छाया शतसंयुता च पुनः मध्यप्रभोनेह शङ्कु र्भवति । अहर्दलं दिना शताहतं यज्जातं तत्तदाप्तं शकुना विभाजितं महगतैष्योघटिकादिकालो भवति ॥ ५ ॥
मा० टी० - इष्ट छाया के १० से गुणि के उसमें १०० को युतकर के फिर उसमें मध्य प्रभा घटाने से शङ्क होता है । दिना र्द्ध को १०० से गुाणे के उसमें सवर्णित शङ्कु का भाग देने से फल गत भोग्य ( मध्याह्न के पूर्व गत मध्याह्न के बाद भोग्य ) घटी होती है ॥ ५ ॥
उदाहरण – कल्पित इष्ट छाया १० है, इसको १० से गुणा किया तो १०० हुए इसमें १०० मिलाया तो २०० हुए, इसमें प्रभा २३। २७ को घटाया तो शङ्कु १७६।३३ हुआ । दिनार्द्ध १६ । २९ को १०० से गुणा तो १६४८।२० हुए इसको ६० से गुणि के सवर्णित किया तो ९८९०० हुए, इसमें सजाती शङ्कु १०५९३ का भाग दिया तो घटी आदि | २० हुई ॥ ५ ॥
छाया विधिः
खखेन्दु निम्नायुदला गतैष्यनाड्याप्त मध्य प्रभयासमेतम् । शतोनितं तद्दशभिर्विभक्तम् लब्धांगुलाद्या भवतीप्सिताभा ॥ ६ ॥
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