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भास्वत्याम् ।
काईके पूर्व भौमादिक क्रमशः ३ । १२१५६ । २४ । ६७ दिन वक्री होते हैं और एतनाही एतनाही दिन तक चक्र के बाद वक्री रह कर फिर मार्गी होते हैं, अर्थात् मगल ७२ दिन, बुध २४ दिन, वृहस्पति ११२ दिन, शुक्र ४८ दिन, शनि १३४ दिन, तक वक्री रहते हैं, मंगल आदि अपने २ पूर्ण चक्र के पहिले क्रमशः ६० । १६ । १६ । ३९ । २१ दिन अस्त होते हैं, और एतनाही एतनाहि दिन चक्र के वाद अस्त रहिके उदय होते हैं, अर्थात् मंगल १२० दिन, बुध ३२ दिन, बृहस्पति ३२ दिन, शुक्र ७८ दिन, शनि ४२ दिन, अस्त रहते हैं। मङ्गल वृहस्पतिशनिश्चर पश्चिम दिशा में अस्त होके पूर्व दिशा में उदय होते हैं, और बुध शुक्र पूर्व दिशा में अस्त होके पश्चिम दिशा में उदय होते हैं। चक्रार्द्ध के पहिले वुध ८ शुक्र ५ दिन पश्चिम दिशा में अस्त और एतनाही एतनाही दिन चक्र के बाद अस्त रहिके पूर्व दिशा में उदय होते हैं, अर्थात् बुध १६ दिन, शुक्र १० दिन, अस्त रहते हैं, ग्रहों का नियम किए हुए अंश आय जावै वह यदि सूर्य की राशि अंशादि से न्यून होय तो सूर्य के राश्यादि के पहले अस्त होय, और सूर्य से ग्रहकी राशि आदि अधिक होय तो सूर्य की राश्यादिक के बाद ग्रह अस्त होते हैं ॥१६ ॥ १७ ॥ १८ ॥ भीमादि ग्रहाणां चक्र चक्रार्द्ध वक्र मार्गवोधक चक्रम् ।
| मं. । बु. । वृ. शु_। . ग्रह | २६ । ४ । १४ । २० । १२ | चक्रमाम
বঙ্গানাৰ
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