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समर्पण।
श्रीदतातचरण,
___ आपकी ही आज्ञा को शिरोधार्य करके मैने इस भास्वती की संस्कृत तथा सोदाहरण भाषा टीका बनाई है, अन्य विद्वान् लोग तो इसकी यथोचित समालोचना करेहींगे परन्तु इसे अविकल सुनने से आपको विशेष आनन्द होगा।
जौ बालक कर तोतरि बाता,
सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता। अत एव आपके ही श्रीचरणों में अक्षण करते हुए मुझे विशेष आनन्द होता है। इति शम् ।
सम्वत् १९६८ वैकम ] भवदीय वात्सल्य भाजनअक्षतृतीया
मातृप्रसाद पाण्डेय
Aho ! Shrutgyanam