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भास्त्रत्याम्।
विद्वान् लोग महल की ३ । १७ बुध की १३ । ३८ वृहस्पति की ३ । १७ शुक्र की ५१ २० शनिश्चर की ३ । १७ शीघ्र गति कहा है ॥ १३ ॥
शीघ्र गति चक्रम् ।
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१७ | ३८ १७ २०
मन्द गति विधिःघनागनागत्रिरविघ्न भुक्ति
भॊग्याहताया खशताप्तलब्धम् । ऊने तु खण्डा सहितान्यथोना
__ मन्द स्फुटाभुक्तिरियं कुजादेः॥१४॥ __ सं० टी०-भौमादि मुक्तिः घनागनागविरविन भोग्यहताया खशताप्तलब्धं तु खण्डा ऊने ऋणे सहिता, अन्यथा ऊना इयं कुजादेमन्द मुकिः स्फुटा ॥ १४ ॥
भा० टी०-- भौमादि ग्रहों के मध्यम गति को क्रमशः १७।७।८।३ । १२ से गुणा करके फिर मन्द खण्डा के अन्तर से गुणा कर उसमें १००० के भाग से जो लब्ध मिलै उसको खण्डा का अन्तर ऋण होय सो मध्यम गति में युत करने से और खंडा का अन्तर धन होय तो मध्यम गति में हीन करने से मन्द स्पष्ट गति होती है ॥ १४ ॥ - उदाहरण- मङ्गल का मध्यमा भुक्ति १ । ४५ को १७ से गुणा तो २९ । ४५ हुई, ऐसे ही बुध आदि की गति गुणक से गुण
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