________________
१०० . भास्वत्याम् । शरनेत्रकरैविभाजिते राश्यादिको भवति, राश्यादिषु शतेन विभाजिते राश्यादिको भवतीति ॥ ११॥
भा०टी०-नक्षत्र गत ग्रह की स्पष्ठी को ४ से गुणि के उसमें नव का भाग देने से फल राशिगत ग्रह होता है, और राशि गत ग्रह को ९ से गुणिके उसमें ४ का भाग देने से फल नक्षत्र गत ग्रह होता है । नक्षत्र गत ग्रह में २२५ का भाग देने से और राशि गत ग्रह में १०० का भाग देने से ग्रहों की स्पष्ट राशि आदिक होती हैं (पूर्व की स्पष्टी से कुछ न्यूनाधिक अवश्यमेव होता है) ।। ११ ॥
उदाहरण-स्फुट सूर्य २००४ ४।४५ को ४ से गुणा किया तो ८०२।५९।० हुए इस में ९ का भाग देने से ८९ १३।१३।२० हुए फिर इसमें १०० का भाग देने से लब्ध स्पष्ट सूर्य की राशि आदि ० । २६ । ४ । ५६ । ० हुई, स्फुट भौम १०५९।४०।३ को ह से गुणा किया तो ९५३७ । ० । २७ हुए इस में ४ का भाग देने से लब्ध २३८४ । १५ । ७ मिले इस में फिर २२५ का भाग दिया तो लब्ध स्पष्ट भौम की राशि आदि १० । १७ । ५६ । ० हुई, ऐसे ही बुध आदि को भी स्पष्ट करै ।। ११ ॥
मध्यम गतिःरवेः स्वरा खं नवतिः खमिन्दोः
केन्द्रे शतं मस्तमसः खसिद्धौ । पादोनहग्राम घनौ खमेघौ
त्र्याब्दौखसप्तावनिजादिकानाम् ॥१२॥
सं०टी०-रवेः सूर्यस्य स्वगखं, इन्दोश्चन्द्रस्य नवतिः खं, केन्द्रे शतं भूः, तमसः राहोः खसिद्धौ,
Aho ! Shrutgyanam