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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
अर्थ:-[ उपर कहेली अंकस्थापना आ प्रमाणे-] सातमो आठमो पहेलो अने छट्टो क्रमवाळा चार कोठाओमां मध्य अंकथी अनुक्रमे ओकेकनी वृध्धिजे अंक स्थापना करवी (१०-११-१२-१३ अंको स्थापवा,) अने त्यारबाद चोथा नवमा बीजा अने वीजा ओ चार कोठाओमां पण त्यांथी आगळ [ १३ थी आगळ ] अकेक अधिक वृध्धि अंको स्थापवा [ अर्थात् १४-१५-१६-१७ अंको स्थापवा. ॥ १४ ॥
आद्यात्रयेऽधिकेतुर्यः । षष्टात्रयधिकनिधिः ॥
मध्यात्रयेधिकेप्याद्यः । इत्थंकोशात्रयाधिकाः ॥ १५॥ अर्थ:-ओ प्रमाणे अंक स्थापना करवाथी पाहिला कोठामा जे अंक आव्यो छे, तेथी त्रण अधिक वृध्धिवाळी अंक चोथा कोठामां आवे छे, अने छट्ठा कोठाना अंकथी त्रण अधिक नवमा कोठानो अंक आवे छे, मध्य कोठाना अंकथीत्रण अधिक पहेला कोठानो अंक आवे छे, ओ प्रमाणे व्रण कोठा त्रण त्रण अधिक अंकवाळा छे. ॥ १५॥
आद्यात्पंचाधिकाःविष्टा-मुने ७ पंचाधिकाःकृते ४ ॥
सिद्धे ८ पंचाधिकानंदे ९ इतिपंचाधिकात्रयी ॥ १६ ॥ अर्थः-तथा पहेला कोठाना अंकथी पांच अधिक अंक बीजा कोठामा रह्यो छे, अने सातमा कोठाना अंकथी पांच अधिक अंक चोथा कोठामा आवे छे, अने आठमांथी पांच अधिक अंक नवमा कोठामां आवे छे, ओ प्रमाणे व्रण कोठाओ पांच पांच अधिक अंकवाळा छे. ॥ १६ ॥
भूविश्वांकाआद्यकोशे । तदधःक्षणचंद्रभाकू ॥ __तदधश्चंद्रपृथिवी-त्यकैःकोशत्रयीभृता ॥ १७॥ अर्थः त्यां पहेला कोठामां भू-१ अने विश्व=३ अटले १३ नो अंक स्थपाय
१ पंचदशयंत्रात् २० यंत्रे पंचाधिकत्वात् . * आद्यात् अटले पंदरना यंत्रथी-इतिटिप्पनिकायां.
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