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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
पण गणाय, कारण के रामनु अर्जुननुं अने कामदेव- ओ त्रण बाण प्रसिद्ध छे, माटे मे ३ मां (१६ मांना) ६ ने मेळवतां पण ९ थाय. अथवा बाण अने बाणधारी ओ बेमां अभेदोपचारथी ६ गणतां ५ मां भेळवी ११ करी १-७-१-११='२० थाय. अर्थ:-हवे १७-१२-११ त्रण अंकनी पंक्तिमां १, [७+१ = ] ८, ११ ओ त्रण मळीने २० थाय छे, अथदा १७-१-१-१ मळीने २० थाय छे, अथवा खूणाथी खूणे गणतां १० मां शून्य होवाथी १ न्यून करवाथी ९ थाय, जेथी ११-९ अटले २० थाय ओ रीते बे स्थानथी [त्रीजा पांचमा कोठाना ११-१० थी पण २० नी गणत्री थई. वळी योजना भावथी संयुक्त भावथी सातमा कोठाना ५-६ नी सादृशतावाळा बे अंकोने मेळवी ११ करी मध्य कोठामा रहेला १० ने अक न्यून पणाथी ९ गणीने ११--९ ओटले २० केटलाक आचार्यो गणे छे, ते योग्य नथी, कारणके प्रथम ११ ना अंक साथे ९ मेळवी अकवार २० गणाई गया छ, तेथी अहिं पुनरुक्त दोष [ पुनर्गणना दोष ] प्राप्त थाय छे, ते माटे अहिं बाण कहेवाथी ५ अथवा ३ गणीने १४ ना अंकने छूटो पाडतां १-४-१५ अटले २० थाय छे, तथा [ १७-१४-१५ ने बदले १६ नी पंक्तिमांथी अंक छूटा पाडी] १-७-१-४-१-६ अटले २० गणाय छे. तथा सत्तर अने सातमा कोष्टकमां बाणने ५ गण्या छे, तेने बदले ३ गणतां १७-३ अटले २०थाय छे. तथा [१४-१५ मां] १४--१-५ अटले २० थाय छे, माटे आ काव्यमां बाण शब्दनो अर्थ ५-६-३ इत्यादिरीते यथा योग्य विचारवो, अने ते प्रमाणे अन्यस्थाने पण बाण शब्दना ओ अर्थोथीज यथायोग्य २० नो अंक प्राप्त करवो. तथा १-७-१२ ओटले पण २० थाय छे. अथवा १७-१-२ थी पण २० थाय छे. तथा [ ११-१६-१३ नी पंक्तिमां अंकोने यथा रुचि छुटा पाडतां ] १-३-१६ थी २० थाय छे, अथवा १३-१-६ थी २० थाय छे. तथा [१७-१४-१५ नी पक्तिमां] १७ मां १४ ना अंकने (१ न्यून ४ अटले) ३ गणीने उमेरतां २० थाय छे, ओ रीते खूणामां रहेला १९ अटले १ न्यून १ अर्थात् ८ गपणीने ८-१-११ थी पण २० थाय छ [ ओ १९-१०-११ नी
{ अगणित १७-१४--१५ नी पंक्तियी जाणवू.
Aho ! Shrutgyanam