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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
भू१विश्व३क्षणचंद्रश्चंद्रश्पृथिवी१युग्मैक१२संख्याक्रमात् ।। चंद्रांभोनिधिध्वाण५षणःनव वसून् ८दिक्१०खेऽचराश्यादिषु॥ ऐश्वर्यात्१रिपुमारी विश्वभयहृत् क्षोभांतरायात् विषात् । लक्ष्मी १ रक्षण २ भारती ३ गुरुमुखात् मंत्रान् इमान् देवते ॥१॥
इति पद्मावती स्तोत्रे अर्थ:-भू–१, विश्व-३, क्षण=६, चन्द्र-१, चंद्र-१, पृथ्वी १, युग्मैक १२, ओ संख्याना अनुक्रमथी चंद्र-१, अम्भोनिधि-४, बाण=५, षट्-६, नववस-८, अने दिग-१० अने तेथी खे उर्ध्व आकाशमां अटले १०नी उपर राशि=१२ विगेरे अंको स्थापवामां जे यंत्र बने छे] ते औश्वर्यवाळा यंत्र लक्ष्मी प्राप्त थाय छे, तथा शत्रु अने मरकी विगेरे तथा सर्व भयोथी रक्षण थाय छे, तथा हृदयक्षोभथी अन्तरायथी अने विषथी पण रक्षण थाय छे. तथा गुरुमुखथी [बृहस्पतिना मुखथी ] वाणी थाय छे, ओ प्रमाणे लक्ष्मी रक्षण भारती प्राप्त थाय छे, तेथी हे पद्मावती देवि ! माता ! ओ ओ मंत्रोने-रहस्योने गुरुमुखथी निश्चय करीने ध्यान करे ॥१॥
तत्रैद्री १ राक्षसो २ दीची ३-वायु४मध्याग्निदक्षिणा७॥ ऐशानी ८ पश्चिमे तासु ९ । क्रमादंक निवेशनम् ॥ २॥ अर्थ:-त्यां अनुक्रमे पूर्व दिशिमां-राक्षसी (नैऋत्य ) दिशिमा, उत्तर दिशिमां वायव्य-मध्य-अग्निकोण-दक्षिण-ईशान-अने पश्चिम ओ नव स्थानोमां [ कोठाओमां ] अनुक्रमे अंकस्थापना करवी ॥२॥
राशेरिष्टस्यांशकोयस्तृतीयोदिग्भि ४ हीनः सद्वितीये निवेश्यः॥ रूपा १ धिक्यान्नंद ९ वेदा ४ द्रि १ वाण ५
रामां३ग६क्ष्मा १ सिद्धि ८ कोष्टेषुदध्यात्॥३॥ १ आ श्लोकमां लखेला अंकोनी विशेष स्पष्टता आ श्लोकनी अहिं चालु टीकाना भा थीज समजी शकाशे. के ओ अंकोथी २० केवी रीते बने छे.
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