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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
कारथवो जोईये, कारणके धातुना [ अस् धातुना ] अकारनो लोप थवा छतां पण तेना कार्यनो प्रसंग प्राप्त थवाथी, माटे मरण पामेलाने पुन: जीवतो करवा सरखो [५ नो लोप कर्या छतां पण पुनः ५ नी गणत्री करवाथी] आ विंशति यंत्र अशुद्ध गणाय, कारणके विनष्ट खरूप वाळो लोप नित्यभावी छे, (जेथी कदाचित् दृश्य थाय अने कदाचित् दृश्य न थाय अवो नथी, माटे लोप कृत ५ नो अंक कोई वखत गणत्रीमा लेवो ने कोई वखत गणत्रीमां न लेवो अम न थाय, जो ५ नो लोप कर्यो छे तो ते लोप नित्यभावी होवाथी कदी पण गणत्रीमां लई शकाय नहिं ). वळी कहो छो के भावनाज सर्वत्र फळ आपनारी छे, तेम पण नथी कारणके आ गोळ छे. अवी मुग्ध भावनाथी खवातुं विष मरण माटेज थाय छे, तथा खोटा नाणाने (खोटा रुपियाने) खरानी बुद्धि ओ ग्रहण करतां पण तेनुं कई फळ थतुं नथी, माटे अक अंक बे कार्यमां (गणत्रीमा अने अगणत्रीमां अम बेरीते) उपयोगी थई शके नहिं. [अथवा लोपमा अने अलोपमां ओ बन्नेमां उपयोगी५नो अंक थाय नहिं ].॥ इति प्रश्नः । अर्थ:-हवे अहिं अनो उत्तर दर्शावाय छे के-ओवात अकान्त इष्ट नथी ( अर्थात् लुप्त अक्षर कई पण कार्य न ज करे अम अकान्त नथी) कारणके-कान्तः अचकथत् इत्यादि पदोमां लुप्त अकार पण वृद्धिना अभावमा प्रयोजनवाळो थयो छे. तेमज अंकविद्यामां [ अंकगणितमां] पण केवळ बिंदुने अंकरहितपणुं छे [अर्थात् बिंदुने अंकमां गण्यो नथी] तो पण अंकनी पासे रहेलं होय त्यारे अंक तरीकेज गणाय छे, अने जो तेम न होय तो अंकनी गणत्री९सुधीज थाय, परंतु १० मो अंक क्याथी प्राप्त थाय? कारणके अंक ओ शब्द वडे नवनीज संख्या गणाय छे. ते कारणथीज अंक संकलनामां बिन्दु प्राप्त होवा छतां पण ते बिन्दन उल्लंघन करीनेज अंक संकलना थाय छे, अने तेथीज अंकगणत्रीनो क्रम (० थी नहिं पण ) १ थी प्रारंभीने १० इत्यादि सुधी गणाय छे, अने ओज अपेक्षा अहिं (लुप्त थयेला ५ ना अंकमां) पण जाणवी. अर्थ:-तथा अंकगणितनी मुख्यतावाळा ज्योतिषशास्त्रमा पण उभयगति [लुप्तनो कोई वखते उपयोग अने अनुपयोग] दर्शावेला छे ते आ प्रमाणे-उदयनी अपेक्षा तिथिनो लोप थवा छतां पण ते लुप्त तिथि
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