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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
अर्थः-उत्तर-ओ प्रश्ननो उत्तर आ प्रमाणे छे के-ग्रहस्थानोमां रहेला अर्थात् नव स्थानोमां रहेला नव ग्रहो उपरथी शकुन (शुभाशुभफळ ) देखवाने अर्थे-जाणवाने अर्थे नव स्थानोमां ओ नव अंक स्थपाय छे. त्यां प्रथम १० नो अंक स्थापवानुं कारणके-सूर्यग्रह हजार किरणवाळो छे, अने पहेली राशिमां [ मेष राशिमां ] दिग्=१० अंश जेटलो होय त्यांसुधी अति उच्च गणाय छे, माटे ९ खानावाळा यंत्रमा प्रथम १० नो अंक स्थपाय छे. ॥७॥
उत्तरायणतः पूर्वो - त्तरयोरंतरेस्थितः ।
श्रेष्टोदिगर्क योगोस्मात् , एकोने नवमोपिच ॥ ८॥ अर्थः-वळी ते सूर्य उत्तरायणथी ( उत्तरायणमां वर्ततो होय त्यारे) पूर्व अने उत्तर दिशाना आंतरामां (इशानकोणमां ) रहेलो [ उगतो] होय छे तेथी (दिग्=१० अर्क-सूर्य अटले) सूर्यनो १० अंशवाळो योग श्रेष्ठ कह्यो छे, अने तेथी १० नो अंक ईशान कोणमां स्थपाय छे. अने तेमांथी १ न्यून करतां नवमो सूर्ययोग पण श्रेष्ठ गण्यो छे ॥ ८ ॥
चंद्रःप्राच्यां वृषेप्युच्चौ, द्विकेवारो द्वितीयेकः ।
अंशेऽत्युच्चः कृष्णपक्ष - हान्या चैकोन भावतः ॥९॥ अर्थः-चंद्र पूर्व दिशामां उदय पामे छे, अने बीजी वृषभराशिमा ते अति उच्च गणाय छे, ते त्रण अंश सुधी अति उच्च गणाय छे, जेथी बे अंशमां वर्ततो पण उच्च गणाय, तेमज चंद्रनो वार (सोमवार) पण सूर्यवारथी [ रवीवारथी ] बीजो छे, पुनः त्रण अंशनी उच्चतामांथी अहिं बे अंशनी उच्चतागणी ते कृष्णपक्षमा हानि पामवाथी अहिं अंशमां पण अकनी न्यूनता गणीने बे अंशनो उच्च गण्यो, जेथी दशना अंक पछी बीजो २ नो अंक स्थापवो. ॥९॥
अंगारकस्तथाग्नेय्यां, नवार्चिष्मान् स चक्ररुक् ।
तदेकोनेस्थितोऽष्टांके, दशातोऽस्याष्टवार्षिका ॥ १०॥ अर्थ:-अंगारक मंगल ग्रह अग्निकोणमां रहे छे, अने नव अर्चि [ नव
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