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अध्याय -६
केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥१३॥
[ केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादः ] केवली, श्रुत, संघ, धर्म
और देव का अवर्णवाद करना सो [ दर्शनमोहस्य] दर्शनमोहनीय कर्म के आस्रव का कारण है।
Attributing faults to the omniscient, the scriptures, the congregation of ascetics, the true religion, and the celestial beings, leads to the influx of faithdeluding karmas.
कषायोदयात्तीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥१४॥
[कषायोदयात् ] कषाय के उदय से [ तीव्रपरिणामः ] तीव्र परिणाम होना सो [चारित्रमोहस्य] चारित्र मोहनीय के आस्रव का कारण है।
Intense feelings induced by the rise of the passions cause the influx of the conduct-deluding karmas.
बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥१५॥ [ बह्वारम्भपरिग्रहत्वं ] बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह होना सो [ नारकस्यायुषः ] नरकायु के आस्रव का कारण है।
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