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अध्याय - २
अथ द्वितीयोऽध्यायः The Category of the Living
औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च ॥१॥
[ जीवस्य ] जीव के [औपशमिकक्षायिकौ ] औपशमिक
और क्षायिक [भावौ ] भाव [च मिश्रः] और मिश्र तथा [औदयिक-पारिणामिकौ च] औदयिक और पारिणामिक यह पाँच भाव [स्वतत्त्वम् ] निजभाव हैं अर्थात् यह जीव के अतिरिक्त दूसरे में नहीं होते।
The distinctive characteristics of the soul are the dispositions (thought-activities) arising from subsidence, destruction, destruction-cumsubsidence of karmas, the rise of karmas, and the inherent nature or capacity of the soul.
द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदाः यथाक्रमम् ॥२॥
उपरोक्त पाँच भाव [ यथाक्रमम् ] क्रमशः [ द्वि नव अष्टादश एकविंशति त्रिभेदाः ] दो, नव, अट्ठारह, इक्कीस और तीन भेद वाले हैं।
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