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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
116. Wrong belief, the three sex - passions (male sex-passion, female sex-passion, and neuter sex-passion), also the six defects like laughter (the six defects are laughter, liking, disliking, sorrow, fear, and disgust), and four passions (anger, pride, deceitfulness, and greed), are the fourteen internal possessions.
अथ निश्चित्तसचित्तौ बाह्यस्य परिग्रहस्य भेदौ द्वौ । नैषः कदापि सङ्गः सर्वोऽप्यतिवर्तते हिंसाम् ॥
अन्वयार्थ (अथ) इनके अनन्तर बाह्य परिग्रह के भेद बतलाते हैं (बाह्यस्य परिग्रहस्य) बाह्य परिग्रह के ( निश्चित्तसचित्तौ ) अचेतन और सचेतन ( द्वौ भेदौ ) दो भेद हैं (एषः) यह दोनों प्रकार के (सर्वोऽपि सङ्गः ) सभी परिग्रह ( कदापि ) कभी भी ( हिंसाम् न अतिवर्तते ) हिंसा का अतिवर्तन - उल्लंघन नहीं करते हैं।
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(117)
117. Further, external possessions are divided into two subclasses, the non-living, and the living. All these possessions never exclude himsā.
उभयपरिग्रहवर्जनमाचार्याः सूचयन्त्यहिंसेति । द्विविधपरिग्रहवहनं हिंसेति जिनप्रवचनज्ञाः ॥
(118)
अन्वयार्थ (जिनप्रवचनज्ञा: ) जिनेन्द्र भगवान के उपदिष्ट आगम को जानने वाले (आचार्याः) श्री परम गुरु आचार्य महाराज (उभयपरिग्रहवर्जनम् ) सचित्त और अचित्त इन दोनों प्रकार के परिग्रहों का छोड़ना ( अहिंसा इति) अहिंसा है और (द्विविधपरिग्रहवहनं ) दोनों प्रकार के परिग्रहों का ग्रहण करना ( हिंसा इति सूचयन्ति ) हिंसा है, ऐसा सूचित करते हैं।
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