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पुरुषार्थसिद्धयुपाय भुन जाते हैं (तद्वत् ) उसी प्रकार (योनौ) योनि में (मैथुने) मैथुन करते समय (बहवो जीवा) अनेक जीव ( हिंस्यन्ते) मारे जाते हैं।
108. Just as a hot rod of iron inserted into a tube filled with sesame seeds burns them up, in the same way, many beings get killed during sexual intercourse.
यदपि क्रियते किश्चिन्मदनोद्रेकादनगरमणादि । तत्रापि भवति हिंसा रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात् ॥
(109)
अन्वयार्थ - ( यदपि ) जो भी (किञ्चित् मदनोद्रेकात्) कुछ काम के प्रकोप से (अनङ्गरमणादि) अनंगक्रीड़न आदि (क्रियते) किया जाता है (तत्रापि) वहां पर भी (रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात् ) रागादिक की उत्पत्ति प्रधान होने से ( हिंसा भवति) हिंसा होती है।
109. Indulgence in perverted sexual practices, owing to abnormal sexual passion, also results in himsā because of the presence of excessive desire.
ये निजकलत्रमानं परिहर्तुं शक्नुवन्ति न हि मोहात् । निःशेषशेषयोषिन्निषेवणं तैरपि न कार्यम् ॥
(110)
अन्वयार्थ - (ये) जो पुरुष (मोहात्) चारित्र-मोहनीय कर्म के उदय से (निजकलत्रमात्रं) अपनी स्त्री मात्र को (परिहर्तु) छोड़ने के लिये (न हि शक्नुवन्ति) निश्चय से समर्थ नहीं हैं (तैः अपि) उन्हें भी (निःशेषशेषयोषिन्निषेवणं) बाकी की समस्त स्त्रियों का सेवन (न कार्यम् ) नहीं करना चाहिये।
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