________________
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
पूज्यनिमित्तं घाते छागादीनां न कोऽपि दोषोऽस्ति । इति संप्रधार्य कार्यं नातिथये सत्त्वसंज्ञपनम् ॥
(81)
अन्वयार्थ - (पूज्यनिमित्तं ) पूज्य पुरुषों के निमित्त (छागादीनां) बकरा आदि के (घाते) मारने में (न कोऽपि दोषः अस्ति) कोई दोष नहीं है (इति) इस प्रकार (संप्रधार्य) निश्चय करके (अतिथये) अतिथि के लिये (सत्त्वसंज्ञपनम् ) प्राणियों की हिंसा (न कार्यं ) नहीं करना चाहिये।
81. “There is nothing wrong in killing animals, like a he-goat, for the sake of (feeding) persons deserving deep respect." Believing this to be true, one should not kill living beings for the sake of guests.
बहुसत्त्वघातजनितादशनाद्वरमेकसत्त्वघातोत्थम् । इत्याकलय्य कार्यं न महासत्त्वस्य हिंसनं जातु ॥
(82)
अन्वयार्थ - (बहुसत्त्वघातजनितात् ) बहुत से प्राणियों का घात करने से तैयार होने वाले ( अशनात् ) भोजन से ( एकसत्त्वघातोत्थम् ) एक प्राणी के घात से उत्पन्न भोजन (वरम् ) श्रेष्ठ है (इति) इस प्रकार (आकलय्य) विचार करके ( महासत्त्वस्य) एक विशाल त्रस प्राणी की ( हिंसनं) हिंसा (जातु) कभी (न कार्यं) नहीं करना चाहिये।
82. “It is better to prepare food by killing one large-size living being rather than by killing a number of smaller ones.” Thinking this to be true, never kill a living being of higher order.
56