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चारित्रान्तर्भावात् तपोऽपि मोक्षाङ्गमागमे गदितम् । अनिगूहितनिजवीर्यैस्तदपि निषेव्यं समाहितस्वान्तैः ॥
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
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अन्वयार्थ ( चारित्रान्तर्भावात् ) सम्यक्चारित्र में गर्भित होने से (तपः अपि ) तप भी (आगमे मोक्षाङ्गम् गदितम् ) आगम में मोक्ष का अंग कहा गया है। इसलिये (तदपि) वह तप भी ( अनिगूहितनिजवीर्यै: ) अपनी शक्ति को नहीं छिपाने वाले ( समाहितस्वान्तैः ) और अपने मन को वश में रखने वाले पुरुष के द्वारा (निषेव्यं) सेवन करना चाहिये ।
(197)
197. The Scriptures have held religious austerity or penance (tapa) to be a constituent of liberation as it is included in right conduct. Therefore, austerity ought to be practised by those who do not conceal their capacity and have a well-controlled mind.
अनशनमवमौदर्यं विविक्तशय्यासनं रसत्यागः । कायक्लेशो वृत्तेः संख्या च निषेव्यमिति तपो बाह्यं ॥
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(198)
अन्वयार्थ (अनशनम्) चार प्रकार के भोजन का परित्याग कर देना, (अवमौदर्यं ) ऊनोदर रहना अर्थात् थोड़ा सा आहार लेना, भरपेट नहीं खाना, (विविक्तशय्यासनं ) एकान्त में सोना-बैठना, ( रसत्यागः ) रसों का त्याग करना, ( कायक्लेशः ) शरीर को क्लेश देना, ( वृत्तेः संख्या च ) तथा आहार की नियति करना, (इति बाह्यं तपः निषेव्यम् ) इस प्रकार यह छह प्रकार का बाह्य तप सेवन करना चाहिये।
198. Fasting, reduced diet, lonely habitation, giving up stimulating and delicious food, mortification of the body, and special restrictions on accepting food, are the (six kinds of) external austerities (bahya tapa) which should be observed.
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