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पुरुषार्थसिद्धयुपाय स्मरतीव्राभिनिवेशोऽनङ्गक्रीड़ान्यपरिणयनकरणम् । अपरिगृहीतेतरयोर्गमने चेत्वरिकयोः पञ्च ॥
(186)
अन्वयार्थ - (स्मरतीव्राभिनिवेशः अनङ्गक्रीड़ा अन्यपरिणयनकरणम्) काम-भोग में तीव्र लालसा रखना, योग्य अंगों से भिन्न अंगों में रमण करना, दूसरों का विवाह कराना, (अपरिगृहीतेतरयोः च) अपरिगृहीता, जिसका किसी के साथ विवाह नहीं हुआ हो, और उसके इतर अर्थात् परिगृहीता, दूसरे की विवाहिता सधवा या विधवा स्त्री, ऐसी जो (इत्वरिकयोः) व्यभिचारिणी हैं उनके यहां (गमने) गमन करना, ये पाँच ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार हैं।
186. Excessive sexual passion, perverted sexual practices, bringing about marriages of others, intercourse with unchaste unmarried or married women, are the five transgressions of the vow of chastity.
Five transgressions of the small vow of chastity Āchārya Umasvami’s Tattvārthsūtra: परविवाहकरणेत्वरिकापरिगहीताऽपरिगहीतागमनानंगक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशाः॥
(Ch. 7 - 28) दूसरे के पुत्र-पुत्रियों का विवाह करना-कराना, पति-सहित व्यभिचारिणी स्त्रियों के पास आना-जाना, लेन-देन रखना, रागभाव पूर्वक बात-चीत करना, पति-रहित व्यभिचारिणी स्त्री (वेश्यादि) के यहाँ आना-जाना, लेन-देन आदि का व्यवहार रखना, अनंगक्रीड़ा अर्थात् कामसेवन के लिये निश्चित् अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से कामसेवन करना और कामसेवन की तीव्र अभिलाषा - ये पाँच ब्रह्मचर्याखुव्रत के अतिचार हैं। Bringing about marriage, intercourse with an unchaste married woman, cohabitation with a harlot, perverted sexual practices, and excessive sexual passion.
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