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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय अन्वयार्थ (मोक्षकारणगुणानाम् संयोगः ) मोक्ष के कारणरूप गुण सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इनका संयोग जिनमें हो ऐसे (अविरतसम्यग्दृष्टिः ) अविरतसम्यग्दृष्टि - चतुर्थगुणस्थानवर्ती (विरताविरतश्च ) विरताविरत-देशविरत पंचमगुणस्थानवर्ती और (सकलविरतश्च) सकलविरत - छठे गुणस्थानवर्ती मुनि महाराज ( पात्रं ) इस प्रकार पात्र ( त्रिभेदम् ) तीन प्रकार के (उक्तं ) कहे गये हैं ।
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171. The recipients of gift (dāna) must have qualities that lead to liberation – right faith, right knowledge, and right conduct. Depending on the level of their advancement on the path to liberation, the recipients are categorized into three classes: right believers without vows, with partial vows, and with great vows.
हिंसायाः पर्यायो लोभोऽत्र निरस्यते यतो दाने । तस्मादतिथिवितरणं हिंसाव्युपरमणमेवेष्टम् ॥
(172)
अन्वयार्थ - ( यतः लोभः हिंसायाः पर्यायः) कारण कि लोभ हिंसा का ही पर्याय है अर्थात् हिंसारूप ही है ( अत्र दाने निरस्यते) वह लोभ इस दान को देने में दूर किया जाता है (तस्मात् ) इसलिये ( अतिथिवितरणं) अतिथि को दान देना (हिंसाव्युपरमणम् एव इष्टम् ) हिंसा का त्याग ही सिद्ध हो जाता है।
172. Giving of gift wipes out greed which is a form of himsā; therefore, giving of gift to a worthy recipient has been said to be renunciation of himsă.
गृहमागताय गुणिने मधुकरवृत्त्या परानपीडयते ।
वितरति यो नाऽतिथये स कथं न हि लोभवान् भवति ॥
(173)
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