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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
अन्वयार्थ - ( ऐहिकफलानपेक्षा ) इस लोक सम्बन्धी फल की अपेक्षा नहीं करना, ( क्षांतिः ) क्षमाभाव धारण करना, (निष्कपटता) मायाचार नहीं रखना, ( अनसूयत्वम्) ईर्ष्याभाव नहीं रखना, (अविषादित्वमुदित्वे ) किसी भी कारण से विषाद-खेद नहीं करना और इस बात का हर्ष नहीं मनाना कि मुझे आज बहुत फायदा हो गया, ( निरहङ्कारित्वम् ) अहंकार - मान नहीं करना, (इति) इस प्रकार (हि) निश्चय से ( दातृगुणाः ) दाता में गुण होना आवश्यक हैं।
169. The qualities required of the donor are: no desire for worldly benefits, composure, earnestness, absence of the feelings of envy, despondency, glee, and pride.
रागद्वेषासंयममददुःखभयादिकं न यत्कुरुते । द्रव्यं तदेव देयं सुतपःस्वाध्यायवृद्धिकरं ॥
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अन्वयार्थ (यत्) जो ( रागद्वेषासंयममददुःखभयादिकं ) राग, द्वेष, असंयम, मद, दु:ख, भय आदि को ( न कुरुते ) नहीं करता है ( सुतपःस्वाध्यायवृद्धिकरं ) सुतप करने में, स्वाध्याय करने में जो वृद्धि करने वाला हो ( तत् एव द्रव्यं देयं ) वही द्रव्य देने योग्य है।
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170. Objects which do not cause arousal of the passions of attachment and aversion, do not bring about non-restraint, pride, pain and fear etc., and result into advancement of austerities and study, are worth giving.
पात्रं त्रिभेदमुक्तं संयोगो मोक्षकारणगुणानाम् । अविरतसम्यग्दृष्टिर्विरताविरतश्च सकलविरतश्च ॥
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