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पुरुषार्थसिद्धयुपाय
अविरुद्धा अपि भोगा निजशक्तिमपेक्ष्य धीमता त्याज्याः । अत्याज्येष्वपि सीमा कार्येकदिवानिशोपभोग्यतया ॥ (164)
अन्वयार्थ - (निजशक्तिम् अपेक्ष्य) अपनी शक्ति का विचार करके (अविरुद्धा अपि भोगाः) अविरुद्ध भोग भी (धीमता) बुद्धिमान पुरुष के द्वारा (त्याज्याः) छोड़ देना चाहिये। (अत्याज्येषु अपि) उनके नहीं छोड़ पाने पर भी (एकदिवानिशोपभोग्यतया) एक दिन या एक रात्रि की उपभोगता का नियम करके (सीमा कार्या) मर्यादा बांध लेनी चाहिये।
164. Depending on the ability, even those objects of enjoyment which are not prohibited should be given up by the wise. If he is not able to renounce these objects completely, a limit, e.g., a day or a night, should be set for their enjoyment.
पुनरपि पूर्वकृतायां समीक्ष्य तात्कालिकी निजां शक्तिम् । सीमन्यन्तरसीमा प्रतिदिवसं भवति कर्तव्या ॥ (165)
अन्वयार्थ - (पुनरपि) फिर भी (पूर्वकृतायां) पहले की हुई (सीमनि) सीमा के भीतर (निजां तात्कालिकी शक्तिम् समीक्ष्य) अपनी उस काल की शक्ति को भले प्रकार विचार करके (अन्तरसीमा) दूसरी सीमा (प्रतिदिवसं) प्रतिदिन (कर्तव्या भवति) कर लेना चाहिये।
165. Setting a limit within the previously set limit, depending on one's capacity at the time, is advisable for each day.
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