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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ७७ ॥ मैं कार्य विन है । परमेश्वरकथा सोभी झूठी है । तपभी झूठ है | तीर्थसेवन झूठ है ॥ तर्क पुराण व्याकरण खेद है । अनुभवविना ग्रामविषै गाय श्वान, हिरणादिज्यौं अज्ञानतपसी । अनुभवप्रसादतें नर कहूं रहौ सदा पूज्य है । अनुभव आनंद, अनुभव धर्म, अनुभव परमपद, अनुभव अनन्तगुणरससागर, अनुभव सिद्ध है अनुपज्योति अमिततेज अखण्ड अचल अमल अतुल अबाधित अरूप अजर अमर अविनाशी अलख अछेद अभेद अक्रिय अमूर्तिक अकर्तृत्व अभोक्तृत्व अविगत आनंदमय चिदानंद इत्यादि अनंत परमेश्वरका विशेषण सर्व अनुभवसिद्धि करतु है । ता अनुभव सार है । मोक्षको निदान सब विधानको शिरोमणि, सुखको निधान अमलान अनुभव है । अनुभवी जीव मुनिजनके चरणारविंद इन्द्रादि सेवें हैं । तातें अनुभवकर ये ग्रन्थ ग्रन्थन मैं अनुभवकी प्रशंसा कही है। अनुभवविना साध्यसिद्धि कहूं नाहीं । अनन्तचेतनाचिन्हरूप अनंतगुणमंडित, अनंतशक्तिधारक, आतम
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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