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________________ अनुभवप्रकाश ॥ पान ७१ ॥ है छह प्रकार उपयोगपरिणामभी भेद पड्या है। एकएक उपयोगपरिणाम एककौं देखें है जानै । मन उपयोग परिणाम चिन्ता विकल्प देखै जानै । परिणाम विचार विकल्प है है चिंतारूप मानना होय । तिस होनैं सो तिस परिणामभेदकों मन नाम कह्या देखि है संत अवर अब इनहकों एक ज्ञानका नाम लेइ कथन करूं हौं । तिस ज्ञानकथनेकरि है दरसनादि सब गुण आगया । इन मन इंद्रियभेदहके ज्ञानकी पर्यायका नाम मतिसञ्ज्ञा है है कहिये । मिश्र भेदज्ञानकरि अर्थस्यौं अर्थान्तरविशेष जानै, इस जाननेकौ श्रुतसज्ञा हैं कहिये। दोन्यों ज्ञानपर्याय कुरूप सम्यग्रूप कहिये । मिथ्यातीकौं जाननमैं कुरूपता है पौद्गलिक कर्मकरि पांचइन्द्रिय छठे मनरूप बन्या संज्ञी देह । तिस देहवि तिसप्रमाण ईतिष्ठया जु है जीवद्रव्यभी इन्द्रिय मन संज्ञा नाम पावै । भावइन्द्री भावमन छहप्रकार १ उपयोगपरिणामभी भेद पड्या है, एकएक उपयोग परिणाम एकएककौं देखै जाने मन-है है उपयोग परिणाम चिन्ताविकल्प देखे जानें परिणामविचार विकल्पचिंतारूप मानना है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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