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________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ गन ६७ ॥ प्राणायाम साधक है, मनोवशीकरण साध्य है । धारणा साधक है, ध्यान साध्य है । ध्यान साधक है, समाधि साध्य है । आत्मरुचि साधक है, अखण्डसुख साध्य है। है है नय साधक है, अनेकान्त साध्य है। प्रमाण साधक है, वस्तु प्रसिद्ध करना साध्य है। है है वस्तुग्रहण साधक है, सकलकार्यसामर्थ्य साध्य है। परपरिणति साधक है, भवदुःख है है साध्य है। निजपरिणति साधक है, स्वरूपानन्द साध्य है। ऐसे साधकसाध्य हैं। है है अनेक भेद जानि निज अनुभव करिये । ये सब स्वरूप आनन्द पायवेको वताये हैं। है है कर्मकल्पना कल्पित है। आत्मा सहज अनादिसिद्ध है। अनन्तसुखरूप है । अनन्त गुणमहिमाकौं धरै है। वीतरागभावना भावनतें शुद्ध उपयोग धारि स्वरूपसमाधिमें है लीन होय स्वसंवेदन ज्ञान परिणतिकरि परमात्मा प्रगट कीजै ॥ कोई जानैगा, आजिके समयमैं स्वरूप कठिन है, तिसर्ने स्वरूप चाहि मेटि है है बहिरात्मा है, आजिसौं अधिक परिग्रह चतुर्थकाल पुण्यवंत नर चक्रवर्ती आदिक है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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