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॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ६२॥ शुभोपयोगके तीन भेद हैं । क्रियारूप, भक्तिरूप, गुणगुणिभेदविचाररूप । सो है है सातिशयकौं लीये निरतिशयकौं लीये षड्भेद । ये जो सम्यक्त्वसहित सो सातिशय, १ सम्यक्त्वविना तीनौ निरतिशय । सम्यक्त्वसहितमैं तौ नियम है, परम्परा मोक्ष करैही है है करै । विनासम्यक्त्व शुभोपयोग संसारसुख दे, देवपद दे, राजपद दे। तहां देवगुरुशाहै स्त्रको निमित्त होय याकै लाभ होनो होय तौ होय, नांही तो न होय । कारजको है है कारणविना नियम है, ऐसी रीति जानियौं । याप्रकार शुभोपयोग साधक है, परम्परा-है । मोक्ष साध्य है॥
अन्तरात्मा भेदज्ञानकरि परसौं भिन्न निजरूप जान, सिद्धसमान प्रतीतिज्ञानहै गोचर करै, तब साधक है आपही आप, निश्चयनय अभेद परमात्मा साध्य है । जहां है 'ज्ञानादि मोक्षमार्ग कहिये एकदेश स्वसंवेदन शुद्धोपयोगरूप, तहां अभेदज्ञानमूर्ति । आत्मा मोक्षस्वरूपकौं साथै, तातें अभेदज्ञान मोक्षरूप साध्य है । जघन्यज्ञानतें उत्कृष्ट है