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॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ५७ ॥
अतत्त्वश्रद्धान मिथ्यादर्शन, अयथार्थज्ञान मिथ्याज्ञान, अयथार्थाचरण मिथ्या है है आचरण । क्षुधादि अठरा दोष संयुक्त देवकी भक्ति तारणबुद्धि” मिथ्यात्व होय । है हैं काहेत ? परानुभवी है, मिथ्यालीन है, तिनके सेये मिथ्यात्व होय । ऐसें दोषसहित है है गुरु ग्रन्थलीन विषयारूढ परबुद्धिधारककौं मानै मिथ्यात्व, मिथ्याशास्त्र मिथ्यामत मिथ्या-है है धर्म इनकौं मानि मिथ्यात्व सो मिथ्यात्व वहिरात्माका साधक है। अनादिका वहिरात्मा है इस मिथ्यासेवनः भया है । तातें बहिरात्मा साध्य है। दुजा सम्यग्भाव साधक है। सो वस्तुका जो. स्वभाव अनन्तगुण ताकी सिद्धि करे है । काहेरौं ? सव गुण यथाविधि स्वरूप सम्यक् अपने स्वरूपकों जब धरै, जब सम्यग्भावकों लीये होय, ज्ञानका निर्विकल्प जानपणा सब आवरणरहित केवलज्ञानरूप सम्यगवस्थारूप, सो सम्यग्ज्ञान । कहिये । यौंही आवरणरहित शुद्ध सम्यकप यथावत् निश्चयभावरूप निर्विकल्प सब है है गुण सम्यक् कहिये ॥