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सिद्धेभ्यः ॥
नमः
अनुभवप्रकाश.
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दोहा-गुण अनन्तमय परमपद । श्रीजिनवर भगवान् ॥ ज्ञेय लक्ष्य है ज्ञानमैं | अचल सदा निजस्थान ॥ १ ॥
परमदेवाधिदेव परमात्मा परमेश्वर परमपूज्य अमल अनुपम आनन्दमय अखfusa भगवान् निर्वाणनाथकों नमस्कार करि अनुभवप्रकाश ग्रन्थ करों हौं, जिनके प्रसाद पदार्थका स्वरूप जानि निज आनन्द उपजै | प्रथम यह लोक षड्द्रव्यका बया है । तामैं पञ्चद्रव्यसौं भिन्न सहजस्वभाव सच्चिदानन्दाद्यनन्तगुणमय चिदानन्द है । अनादिकर्म सँयोगतैं अनाद्यशुद्ध होय रह्या है । तातैं परपद मैं आपा मानि परभाव कीये । तातैं जन्मादि दुःख सहे है । ऐसी दुःखपरिपाटी अपनी अशुद्धचिन्तवनतें पाई है। जो अपने स्वरूपकी संभार करें तो एकछिनमें सब दुःख विलय जाय । जैसा कहु