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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth तस्यपादे महादिव्य लोहितं सुमहत्सरः। तस्मिन् गिरो निवसति यक्षोमणिधरोवशी।१२। दिव्यारण्यं विशोकञ्चतस्य तीरे महद्धनम्। तस्मिन् गिरौ निवसति यक्षोमणिकरोवशी।१३। सौभ्यः सुधार्मिकैश्चैव गुह्यकैः परिवारियः। कैलासात् पश्चिमोदीच्यां ककुद्मानौषधी गिरिः।१४। उस अच्छोदिका सरिता के तट पर एक अत्यन्त शुभ-दिव्य और महान चैत्ररथ नाम वाला वन है। उसमें गिरि पर अपने अनुचरों के साथ मणिभद्र निवास किया करते हैं।८। यह यक्षों का अत्यन्त क्रूर सेनापति है जो सर्वदा गुह्यकों से परिवारित रहा करता है और वहाँ पर परम पुण्यमयी मन्दाकिनी नाम वाली अच्छोदिका शुभ नदी बहा करती है।९। यही मण्डल के मध्य में महोदधि में प्रविष्ट होने पर कैलाश के दक्षिण पूर्व में शिव सर्वोषधि गिरि है।१०। मैनसिल से परिपूर्ण पर्वत के प्रति सुबेल और दिव्य-हेम की शिखर वाला-लोहित नाम वाला एक महान सूर्यप्रभ गिरि है जिसकी प्रभा सूर्य के समान है। उस पर्वत के निचले भाग में महान् दिव्य लोहित नाम वाला ही एक सर है। उसी सर से लौहित्य नाम वाला एक विशाल नद वहन किया करता है।१११२। उस नद के तीर एक अति महान्-दिव्य विशोका रूप है। उसमें पर्वत पर वशी यक्ष मणिधर निवास किया करता है। वह परम सौम्य और सुधार्मिक गुह्यकों से चारों ओर में घिरा हुआ रहा करता है। कैलाश पर्वत से पश्चिमोत्तर दिशा में ककुद्मान् नाम वाला औषधियों का गिरि है।१३-१४ । ककुद्मति च रूद्रस्य उत्पत्तिश्च ककुद्मिनः। तदजनन्त्रैः ककुद शैलन्त्रिककुदं प्रति ।१५। सर्वधातुमयस्तत्रसुमहान् वैद्युतो गिरिः। तस्य पादे महद्दिव्यं मानस सिद्धसेवितम् ।१६। तस्मात् प्रभवते पुण्या सरयूलोक्पवरी। तस्यास्तीरे वनं दिव्यं वैभ्राजं नामविश्रुत ।१७। कुबेरानुचरस्तस्मिन् प्रहेतितनयो वशी। ब्रह्मधाता निवसति राक्षसोऽनन्तविक्रमः।१८। कैलासात् पश्चिमामाशां दिव्यः सर्वौषधिगिरिः। अरूणः पर्वतश्रेष्ठो रुक्मधातुविभूषितः।१९। भवस्य दयितः श्रीमान्पार्वतोहेमसन्निभः। उस ककुद्मान् में ककुद्मी रुद्र की उत्पत्ति होती है। वह बिना जन वाला त्रिककुद के प्रति त्रैककुद शैल है।१५। वहीं पर सम्पूर्ण धातुओं से परिपूर्ण एक अत्यन्त महान् वैद्युत नाम वाला गिरि है। उस पर्वत के पाद में एक अत्यन्त दिव्य मानस वाला सरोवर है जो सदा सिद्धों के द्वारा सेवित रहा करता है ।१६। उस सरोवर से परम पुण्यमयी लोकों को पावन कर देने वाली सरयू नाम वाली नदी समुत्पन्न हुआ करती है। उसके तट पर एक अत्यन्त विशाल वैभ्राज्य नाम से प्रसिद्ध दिव्य वन है।१७। वहाँ पर कुबेर का अनुचर वशी प्रोहित का पुत्र ब्रह्मधाता निवास किया करता है वह राक्षस अनन्त विक्रम वाला था।१८। कैलाश पर्वत से पश्चिम दिशा में एक अति दिव्य सर्वौषधि गिरि यह पर्वत सम्पूर्ण पर्वतों में श्रेष्ठ वर्ण वाला और रुक्म (सुवर्ण) धातु Adinath Rishabhdev and Ashtapad 6 1964
SR No.009856
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages72
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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