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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth तस्याश्रमस्योत्तरस्त्रिपुरारिनिषेवितः। नानरत्नमयैः श्रृंगः कल्पद्रुमसमन्वितैः॥१॥ मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः। तस्मिन्नवसति श्रीमान् कुबेरः सह गुह्यकैः ।।२।। अप्सरोऽनुगतो राजा मोदते ह्यलकाधिपः। कैलासपादसम्भूतं रम्यं शीतजलं शुभम् ।।३।। मन्दारपुष्परजसा पूरितं देवसन्निभम् । तस्मात् प्रवहते दिव्या नदी मन्दाकिनी शुभा ।।४।। दिव्यञ्च नन्दनं तत्र तस्यास्तीरे महद्वनम् । प्रागुत्तरेण कैलासादिव्यं सौगन्धिकंगिरिम् ।।५।। सर्वधातुमय दिव्य सुवेलं पर्वतं प्रति। चन्द्रप्रभो नाम गिरिः स शुभ्रो रत्नसन्निभः ।।६।। तत्समीपे सरो दिव्यमच्छोदं नाम विश्रुतम् । तस्मात् प्रभवते दिव्या नदी ह्यच्छोदिका शुभा।।७।। सूतजी ने कहा-उनके आश्रम से उत्तर दिशा की ओर भगवान् त्रिपुरारि शिव के द्वारा निषेवित तथा कल्पद्रुमों से संयुत एवं अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण शिखरों से समन्वित हिमवान् के मध्य में पृष्ठ पर कैलाश नाम वाला पर्वत है। उसमें कुबेर अपने गुह्यकों को साथ में लेकर निवास किया करते हैं।१-२। वहाँ पर अलकापुरी का स्वामी कुबेर राजा सर्वदा अप्सराओं से अनुगत होकर प्रसन्नता का अनुभव किया करते हैं। वहाँ कैलाश के पाद से समुत्पन्न परमरम्य एवं शुभ शीतल जल है।३। जो जल मन्दार नाम वाले देववृक्ष के रज पराग से पूरित रहा करता है और देव के ही सदृश है। उसी जल से एक मन्दाकिनी नाम वाली सरिता जो परम दिव्य है और अत्यन्त शुभ है वहन किया करती है।४। उस नदी के तीर पर ही वहाँ पर अतीव दिव्य एवं महान वन है जिसका शुभ नाम नन्दन है। कैलाश गिरि से पूर्वोत्तर में एक अति दिव्य सोगन्धिक गिरि है।५। यह समस्त धातुओं से परिपूर्ण दिव्य और पर्वत के प्रति सुन्दर वेल वाला है। एक चन्द्रप्रभ नाम वाला भी वहाँ पर पर्वत है जो परम शुभ्र और रत्न के तुल्य है।६। उसके ही समीप में एक परम दिव्य अच्छोद नाम से प्रसिद्ध सरोवर है। उस तट से एक शुभ अच्छोदिका नाम वाली नदी उत्पन्न होती है।७। तस्यास्तीरे वनं दिव्यं महच्चैत्ररथं शुभम् । तस्मिन् गिरौ निवसति मणिभद्रः सहानुगः।८। यक्षसेनापतिः क्रूरो गुह्यकै परिवारितः। पुण्या मन्दाकिनी नाम नदी ह्यच्छोका शुभा।९। महीमण्डलमध्ये तु प्रविष्टे तु महादधिम् । कैलासदक्षिणे प्राच्यां शिवं सवौषधिं गिरिम। मनः शिलामयं दिव्यं सुवेलपर्वतं प्रति। लोहितो हेमश्रृंगस्तु गिरिः सूर्यप्रभो महान् ।११। -6 1954 - Adinath Rishabhdev and Ashtapad
SR No.009856
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 177 to 248
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages72
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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