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Shri Ashtapad Maha Tirth
वासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहले तस्स णं माहबहुलस्स (ग्रं. ९००) तेरसीपक्खेणं उप्पिं अट्ठावयसेलसिहरंसि दसहि अणगारसहस्सेहिं सद्धिं चउद्दसमेणं भत्तेणं अप्पाणएणं अभीइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वलकालसमयंसि संपलियंकनिसण्णे कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ।।१९९ ।।
१९९. उस काल और उस समय कौशलिक अर्हत् ऋषभ बीस लाख पूर्व वर्ष पर्यन्त कुमार अवस्था में रहे । वे त्रेसठ लाख पूर्व वर्षों तक महाराजा (सम्राट) के रूप में रहे । वे तिरासी लाख पूर्व तक गृहवास में रहे । वे एक हजार वर्ष पर्यन्त छद्मस्थ श्रमण पर्याय में रहे । वे एक हजार वर्ष न्यून एक लाख पूर्व तक केवली पर्याय में रहे । वे संपूर्ण एक लाख वर्ष पूर्व तक श्रमण पर्याय में रहे । कौशलिक ऋषभ चौरासी लाख पूर्व पर्यन्त पूर्णायु का पालन कर वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म के क्षीण होने पर इसी अवसर्पिणी के सुषम-दुषम नामक तीसरे आरे के बहुत कुछ व्यतीत हो जाने पर और इस तीसरे आरे के मात्र तीन वर्ष, साढ़े आठ महीने शेष रहने पर, जब हेमन्त ऋतु का तीसरा महीना, पाँचवां पक्ष माघ कृष्ण चल रहा था तब उस माघ कृष्ण त्रयोदशी के दिन, अष्टापद पर्वत के शिखर पर, दश हजार श्रमणों के साथ जल रहित चतुर्दश भक्त (छह उपवास) तप करते हुए, अभिजित नक्षत्र का योग आने पर, पूर्वाह्न काल में, पर्यङ्कासन में बैठे हुए भगवान् कालधर्म को प्राप्त हुए । समस्त प्रकार के दुःखों से पूर्णरूपेण मुक्त हुए ।
199. In that epoch, in those times, Arhat Rishabha, the Kosalin, lived the life of a prince for two million purva years and ruled as a king for six million and three hundred thousand purva years; he thus lived as a house-holder for a total of eight million and three hundred thousand purva years. He dwelt in a state of partial ignorance for a thousand years. He dwelt in a state of kevala knowledge for a hundred thousand purva years, minus a thousand years. He thus lived as a shraman for a full hundred thousand years and his total span of life comprised eight million and four hundred thousand purva years.
Then, after his karmas arising due to name, gotra and a man's alloted span of life and consciousness were extinguished, he attained parinirvana and passed away into a state beyond all pain. A major part of the sushma-dushma phase of the present avasarpini was over; a period of only three years eight-and-a-half months of this phase remained, when on the thirteenth of the dark-half of Magha, that is, the third month and the fifth fortnight of the winter season, Arhat Rishabha, the Kosalin, attained parinirvana, while sitting cross-legged in meditation on the summit of mount Ashtapada. The time was forenoon. The moon was in conjunction with the constellation abhijit. Arhat & Rishbha was practising the vow of taking one meal, without water, out of fourteen regular meals. He had with him the company of ten thousand homeless mendicants.
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Kalpasutra