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॥ श्री अष्टापद तीर्थ की आरती ॥
चौबीस जिनेश्वर आरती कीजे
__ मन वांछित फल शिव सुख लीजे....(1) चौबीस जिनेश्वर मूरत भराई
भरत महाराजे अष्टापदजी (2) गुरु गौतम की महिमा न्यारी,
अनन्त लब्धि के गुरु भंडारी (3) जो जन नित उठ गौतम ध्यावें
रोग शोक नही कभी संतावे (4) रावण नृप ने भक्ति करके,
गोत्र तीर्थंकर यहाँ बांधा रे (5) सहज सरल और शुभ भाव से
भक्ति करे जो मुक्ति पावे. (6) तीरथ तिरने का स्थल रे, आरती गावें 'मयूर' भाव से
॥ अष्टापदजी मंगल दीवो ॥
दीवो रे दीवो प्रभु मंगलिक दीवो । प्रभु भक्ति मां बहु लावो । जो जन भक्ति करे, बहु भावे । मुक्ति पूरी नो पंथ वो पावे । मंगल चतुर्विध संघ नो थावे । ऐवी भावना सहुऐ भावे । अष्टापदजी जिन चौबीस आरती उतारे राजा कुमारपाल बिराजे आरती उतारे राजा भरत महाराजे हिल मिल सह प्रभु चरणे आये कनक संग सह दीवो गावे.....दीवो रे दीवो प्रभु मंगलिक दीवो ।।
Ashtapad Tirth Aarti -
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