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Shri Ashtapad Maha Tirth
के पूर्वभवों का वर्णन करते हुए भगवान् ऋषभदेव के जीवन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इतना ही नहीं, भगवान् के जन्म से पूर्व होने वाले कुलकरों का वर्णन, उनकी उत्पत्ति का हेतु आदि विषयों पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है। श्री ऋषभदेव से सम्बन्धित निम्न विषयों का निर्देश प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है
(१) ऋषभदेव के द्वादश पूर्वभवों का कथन । (२) ऋषभदेव का जन्म, जन्म-महोत्सव । (३) वंशस्थापना, नामकरण। (४) अकाल मृत्यु। (५) श्री ऋषभदेव का कन्याद्वय के साथ पाणिग्रहण। (६) संतानोत्पत्ति। (७) राज्याभिषेक। (८) खाद्य-समस्या का समाधान। (९) शिल्पादि कलाओं का परिज्ञान । (१०) भगवान् ऋषभदेव की दीक्षा । (११) आहार-दान की अनभिज्ञता। (१२) नमि-विनमि को विद्याधर ऋद्धि । (१३) चार हजार साधुओं का तापस वेष ग्रहण । (१४) श्रेयांस के द्वारा इक्षुरस का दान । (१५) श्रेयांस के पूर्वभव। (१६) केवलज्ञान। (१७) भरत की दिग्विजय । (१८) सुन्दरी की प्रव्रज्या। (१९) भारत-बाहुबली युद्ध । (२०) मरीचि का नवीन काल्पनिक वेष-ग्रहण । (२१) वेदोत्पत्ति। (२२) श्री ऋषभदेव का परिनिर्वाण। (२३) भरत का केवलज्ञान एवं निर्वाण ।
ऋषभदेव के पूर्वभवों का वर्णन सर्वप्रथम इसी ग्रन्थ में हुआ है। कल्पसूत्र की टीकाओं में जो वर्णन हुआ है, उसका भी मूल स्रोत यही है।
ऋषभदेव के जीवन की घटनाओं के साथ ही उस युग के आहार, शिल्प, कर्म, ममता, विभूषण, लेख, गणित, रूप, लक्षण, मानदण्ड, प्रोतन-पोत व्यवहार, नीति, युद्ध, इषुशास्त्र, उपासना, चिकित्सा, अर्थशास्त्र, बंध, घात, ताडन, यज्ञ, उत्सव, समवाय, मंगल, कौतुक, वस्त्र, गंध, माल्य, अलंकार, चूला, उपनयन, विवाह, दत्ति, मृतपूजना, ध्यापना, स्तूप, शब्द, खेलायन, पृच्छना आदि चालीस विषयों की ओर भी संकेत किया है।३६ जिसके आद्य प्रवर्तक श्री ऋषभदेव हैं।
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आवश्यक नियुक्ति गा. १८५-२०६।
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Rushabhdev : Ek Parishilan