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Shri Ashtapad Maha Tirth
तीर्थ कहा गया है। मुनि श्री जयन्तविजयजी ने भी अपने एक गुजराती ग्रन्थ में, जिसका नाम “पूर्व भारतनी जैन तीर्थ भूमिओ' में बतलाया है कि प्राचीन जैन ग्रन्थों में कैलाश के नाम से अष्टापद तीर्थ है ।
अब इस पर्वत की खोज करने वाली पार्टी ने पता लगाया है कि यह पर्वत हिमालय के बीच शिखरमाला में स्थित है । उत्तर भारत के अलमोड़ा शहर से यह लगभग २५० मील दूर तिब्बत प्रदेश में है । भारत की सीमा इस पर्वत से लगभग ४०-४५ मील पर है । यह पर्वत प्राकृतिक नहीं है बल्कि किसी ने इसे काट कर तराश करके बनाया है - ऐसा मालूम पड़ता है । प्राकृतिक पर्वत उतराई - चढ़ाई व ढलानों वाले होते हैं । जिनमें कुदरती लहरें आदि होती है । लेकिन यह पर्वत ऐसा नहीं है । अपनी शृंखला में सबसे ऊँचा है । वह कैलाश पर्वत दूर से देखने पर चारों दिशाओं से एक जैसा ही दिखाई देता है । इसके चारों ओर खंदक हैं । पर्वत नीचे की तरफ चारों ओर की गोलाई में चौकोना सा और ऊपर का भाग गोल है । इस पर्वत की चोटी निचले भाग से चार, पाँच हजार फूट ऊँची होगी । समुद्र तल से ऊँचाई २३ हजार फूट है ।
इस पर्वत की बनावट ऐसी लगती है जैसे समोसरण की रचना की हुई है । चारों ओर की खंदक में चौबीसों घंटे रुई की तरह बरफ गिरती रहती है । पर्वत चारों ओर बरफ से ढका हुआ है । पहाड़ों पर चढ़नेवाले लोग इसके नज़ीदक नहीं जा सकते । जो जाते हैं उन्हें चार मील दूर रुककर ही इस दृश्य को देखना पड़ता है | चढ़ना अत्यन्त कठिन है क्योंकि चोटी गोल गुम्बज के समान है और हिमाच्छादित
शिखर के बीचोंबीच कलश के समान बरफ़ में ढका हुआ टीला सा दिखलाई देता है और अधिक ऊँचाई पर सुनहरी चमक सी भी दिखलाई देती है । इसकी परिक्रमा ४० मील घेरे की है ।
इस पर्वत को कोई कैलाश या शंकरजी का स्थान कहते हैं । तिब्बती लोग इसे काँगरिक चीन या बुद्ध का निर्वाण स्थान कहते हैं । इस पर्वत की दक्षिण दिशा में सोना व उत्तर दिशा में चाँदी की खाने हैं । गरम पानी के झरने भी काफी हैं ।
अलमोड़ा से पैदल चलना पड़ता है । पहुँचने में २५ दिन लगते हैं । इस पर्वत के २० मील दक्षिण में मानसरोवर झील है । इस झील की लम्बाई व चौड़ाई २०-२० मील है | थोड़ी ही दूरी पर “रक्ष" झील है जो उत्तर-दक्षिण २० मील व पूर्व-पश्चिम ६-७ मील है । मानसरोवर का पानी बहुत ही निर्मल हैं तथा ४०० फूट गहरा हैं । जब हवाओं की गति मध्यम होती है तथा लहरें उठनी बन्द हो जाती हैं, तब झील के पानी में नीचे की जमीन का भाग दिखाई देता है । इस झील पर हंस आदि पक्षी काफी संख्या में आते जाते रहते हैं । यहाँ जैन मुनि स्वामी प्रणवानन्द दो-दो साल तक रहकर आए थे और उन्होंने अपनी पुस्तक 'कैलाश एक मानसरोवर" पृष्ठ १० पर इसका माहात्म्य लिखा है ।
कैलाश (अष्टापद) पर्वत तिब्बत की पहाड़ियों पर स्थित है । इसलिए लिंगपूजा का शब्द तिब्बत से ही प्रारम्भ हुआ है। तिब्बती लोग इस पर्वत की बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं।
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Jainism in Central Asia