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जब गीतापाठ सम्पूर्ण हुआ, तो घड़ियालने ब्राह्मणको मोतियोंका एक घड़ा दक्षिणा में दिया - 'पण्डितजी, अगर आप मुझे त्रिवेणीमें छोड़ आवें तो ऐसे पाँच घड़े आपको और दूंगा ।' ब्राह्मणने घड़ियालकी बात मान ली और उसे त्रिवेणी पहुँचा दिया | घड़ियालने वायदे के मुताबिक़ मोतियोंके पाँच घड़े दिये । लेकिन जब ब्राह्मण खुशी-खुशी वापस चलने लगा तो उसने देखा कि घड़ियाल उसकी तरफ़ व्यंग से मुसकरा रहा है। पूछने पर घड़ियाल ने बताया- ' आप अवन्तिका में जाकर मनोहर धोबीके गधे से मिलिए । वह आपको इसका मतलब बतलायेगा ।'
अवन्तिका पहुँचकर ब्राह्मण गधेसे मिला । गधे ने कहा – पूर्व जन्म में मैं राजाका सेवक था । राजा एकबार त्रिवेणी स्नानको गये | त्रिवेणी के दर्शनसे वे इतने आनन्दित हुए कि उन्होंने राजपाट छोड़कर वहीं ईश्वरभजनमे बाक़ी ज़िन्दगी बितानेका संकल्प कर लिया । मुझपर महाराजका बड़ा स्नेह था | इसलिए अनुग्रहके साथ बोले— 'इच्छा हो तो यहीं हमारे साथ रहो, तुम्हारी भी उम्र सौके क़रीब पहुँच रही है, वर्ना ये हज़ार मुद्राएँ लेकर घर लौट जाओ ।' मैं मूढ़ था । धन-वैभवके व्यामोह में लौट आया । तुमने भी यही ग़लती को । बुढ़ापेमें घड़ियाल जैसे क्षुद्र जीवने भी आत्मशान्ति के लिए अपना इन्तज़ाम कर लिया । लेकिन तुम मनुष्य और फिर मनुष्यों में श्रेष्ठ ब्राह्मण होकर भी धनकी तृष्णामें अभीतक दरदर भटक रहे हो ! तुम्हारी यह मतिमन्दता देखकर ही घड़ियाल हँसा था !'
- स्वामी प्रणवानन्द
स्वघात
एक बार एक राजाने राजशिल्पीको बुलाकर हुक्म दिया कि 'एक ऐसा भवन बनाओ जो खूबसूरती और सुहूलियत के लिहाज़से राज भरमें
सन्त-विनोद
दद