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श्री समर्थ बोले- 'नहीं, नहीं, कामको हाथों-हाथ कर डालना चाहिए; वरना जो काम पीछे रह जाता है, वह हो नहीं पाता ।'
फ़ौरन् कारीगरोंको बुलाया गया । शिला टूटी तो सबने देखा कि शिलाके अन्दर पानीसे भरा एक गड्ढा निकला जिसमें एक जीवित मेंढक बैठा हुआ था । उसे देखकर सद्गुरु बोले- 'वाह, वाह, शिववा, धन्य हो तुम ! इस शिला के अन्दर भी तुमने पानी रखवा कर इस मेंढकके जीने का इन्तज़ाम कर रक्खा है !'
सुनकर शिवाजी महाराजके दिलमे एक बिजली-सी कौंध गई । उन्हें अपने अहंकारका पता लग गया । उन्होंने गुरुजी के चरणोंमें गिर कर अपराधको क्षमा माँगी ।
क्षमा
पैठण नगर में एक पठान गोदावरी-स्नान करके आनेवालोंको तंग किया करता था ।
श्री एकनाथ महाराजको भी वह बहुत कष्ट देता था । और लोग तो कुछ बुरा-भला कहते भी थे, मगर एकनाथ जी कुछ कहते हो नहीं थे कभी ।
एक दिन जब एकनाथजी स्नान करके आ रहे थे तो पठानने उनके ऊपर कुल्ला कर दिया । वे शान्त भावसे फिर स्नान करने लौट पड़े । जब स्नान करके उधर से गुज़रे तो पठानने उनपर फिर वे उसी तरह फिर नहाने चल दिये । मगर पठान अपनी आया— उसने उनपर इस तरह एक सौ आठ बार कुल्ला हर बार एकनाथ जीको स्नान करना पड़ा ।
सन्त-विनोद
कुल्ला कर दिया ।
दुष्टतासे बाज़ न
किया और
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