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‘विशाखे ! श्रावस्तीमें इस समय जितने मनुष्य हैं, तुम उतने पुत्र-पौत्रकी इच्छा करती हो ?' 'हाँ भन्ते !'
'श्रावस्ती में रोज़ कितने आदमी मरते होंगे ?'
'कम-से-कम एक तो हर रोज़ मरता ही है ।'
'तो क्या किसी दिन तुम बिना भीगे केश और वस्त्र के रह सकोगी ?" 'नहीं, भन्ते !'
'जिसके सौ प्रिय ( सगे-सम्बन्धी ) हैं, उसे सौ दुःख होते हैं । जिसका एक प्रिय है उसे केवल एक दुःख होता है । जिसका एक भी अपना नहीं है उसके लिए जगत् में कहीं भी दुःख नहीं है । वह सुखरूप हो जाता है । जगत् में सुखी होनेका एकमात्र उपाय यह है कि किसीको भी अपना प्रिय न माने, किसीसे ममता न रखे । अशोक और प्रसन्न होना चाहे तो कहीं भी सम्बन्ध स्वीकार न करे ।'
गाली
एक ब्राह्मण गौतम बुद्ध से दीक्षा लेकर भिक्षु हो गया । उसका एक सम्बन्धी इससे बड़ा बिगड़ा और आकर तथागतको गालियाँ देने लगा । जब थक कर चुप हो गया तो तथागतने पूछा - ' क्यों भाई ! तुम्हारे घर कभी अतिथि आते हैं ?"
'आते हैं ।'
'तुम उनका सत्कार करते हो ?'
'अतिथिका सत्कार कौन मूर्ख नहीं करेगा ?"
'मान लो तुम्हारी दी हुई चीजें अतिथि स्वीकार न करे तो वे कहाँ जायेंगी ?"
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'वे जायँगी कहाँ, अतिथि नहीं लेगा तो मेरे ही पास रहेंगी ।' 'तो भद्र ! तुम्हारी दी हुई गालियाँ मैं स्वीकार नही करता ।' ब्राह्मणका मस्तक लज्जासे झुक गया ।
सन्त-विनोद