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बुलाकर कहा-"आज मैं आप लोगोंको एक खुशखबर सुनाता हूँ। कलसे आपका वेतन दस रुपया बढ़ जानेवाला है। शिक्षक सुनकर गद्गद हो गये और आनन्दसे तालियां बजाने लगे। फिर महाराजने पूछा-'बताइए आपमेंसे कितने बीड़ी पीते हैं ?' लगभग सबने हाथ ऊँचा कर दिया। आगे पूछा-'रोज़ कितनी बीड़ी पीते हैं ?' जवाब मिला-'दो चार आनेकी ।'
महाराजने कहा-'अच्छा । और चाय कौन-कौन पीते हैं ?' 'सब हो !'
'तो अगर आप सब चाय और बीड़ी छोड़ दें तो आपका वेतन दस रुपया बढ़ जाता है या नहीं ? और इस प्रकार आप सुसंस्कारी भी बनेंगे और बालकोंको बुरी आदतोंसे दूर भी रख सकेंगे।'
यश-तृष्णा राजा भोजके दरबारमें एक धनपाल नामक जैन पण्डित थे। कहा जाता है कि वर्षों के परिश्रमके बाद उन्होंने बाणकी कादम्बरीका प्राकृतमें अनुवाद किया था। राजाने धनपालसे कहा-'इस ग्रन्थके साथ मेरा नाम जोड़ दो तो यथेच्छ स्वर्णमुद्राएँ हूँ।' धनपाल धर्माचारी थे। उन्होंने नम्र दृढ़ता पूर्वक राजाकी बात माननेसे इनकार कर दिया।
अपना ही आश्रित पण्डित ऐसी गुस्ताखी करे ! राजाने आगबबूला होकर सारा अनुवाद जला दिया ! धनपालको बड़ा दारुण दुःख हुआ । खाना-पीना तक छूट गया । यूँ उन्हें उदासीन देखकर उनकी पुत्रीने पूछा'पिताजी, शोकमग्न क्यों रहा करते हैं ? मुझे तो बताइए !'
धनपालने सारा किस्सा सुना दिया। पुत्री बोली-'अरे, इसमें क्या है ! आपको पाण्डुलिपि अल्पविराम सहित मुखाग्र है मुझे। आप लिखिए, मैं बोलती जाती हूँ।'
कादम्बरी प्राकृतमें तैयार हो गई। पुत्रीको इस अद्भत शक्तिसे धनपाल इतने मुग्ध हुए कि उसीके नामपर उस पुस्तकका नाम 'तिलकमंजरी' रख दिया।
सन्त-विनोद