________________
बड़ी मार पड़ेगी !
एक सेठजी अपनी विशाल हवेलीकी आकाशीपर बैठे हुए फल-फलादि खा रहे थे और छिलके नीचे फेंकते जाते थे । वहाँसे निकलता हुआ एक पागल-सा आदमी छिलकोंको खाने लगा। यह देखकर सेठके नौकरोंने उसे डपटकर चले जानेको कहा । मगर पागलने उसे गनकारा नहीं, इसलिए नौकरोंने उसे मारना शुरू कर दिया । मगर जितनी ज़्यादा मार पड़ती गई उतनी ही बुलन्द आवाज़से वह हँसता गया । इतनेमे सेठजीकी नज़र उसपर पड़ी । देखकर सख्त ताज्जुब हुआ । बुलाया और उससे हँसनेका कारण पूछा । वह बोला- 'सेठजी ! इसमें ताज्जुब करनेकी कोई बात नहीं । मैं यह हँस रहा था कि छिलके खानेवाले पर इतनी मार पड़ती है तो गूदा खानेवालों पर कितनी मार पड़ेगी !'
सेठजी यह जवाब सुनकर सन्न रह गये और क्षमा माँगने लगे ।
तीसरे महायुद्ध के बाद !
एक सुबह, जब सारी दुनिया तीसरे महायुद्ध के कारण मौत के मुंहमें समा चुकी थी, एक बन्दर एक तहखानेसे बाहर निकला । जब उसने अपनी नज़रें चारों ओर दौड़ाई तो हर तरफ़ बरबादी और तबाहीका ही क्रूर दृश्य देखकर वह काँप उठा ! संतप्त हो वह सामने के ऊँचे पहाड़की चोटीपर चढ़ गया और कूदकर जान देने ही वाला था कि पीछे एक आहट सुनाई पड़ी । घूमकर उसने देखा - एक दूसरे तहखानेसे एक बंदरियाँ बाहर निकलकर उसकी ओर देख रही थी । बन्दर मरनेका ख्याल छोड़कर उसके पास पहुँच गया और बड़ी परेशानी के साथ बोला- 'खुदा खैर करे ! क्या हम लोगोंको अब फिरसे सृष्टिकी रचना करनी होगी ?"
- नोबल पुरस्कार विजेता, विलियम फाकनर
सन्त-विनोद
३७