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________________ कपटी तपस्वी मलिक दिनार अत्यन्त सरल और पवित्र हृदयके महात्मा थे। एक दिन एक स्त्रीने उन्हें 'कपटी' कह कर पुकारा । अत्यन्त आदर और विनय पूर्वक उन्होंने फ़ौरन् कहा-'बहिन ! इतने दिनोंमें मेरा सच्चा नाम लेकर पुकारने वाली सिर्फ तुम ही मिली हो । तुमने मुझे ठीक पहचाना !' मूर्ख शिष्य शंकराचार्य महान्का एक मूर्ख शिष्य था। वह हर बातमें उनकी नक़ल किया करता था। शंकर 'शिवोऽहं' कहते तो वह भी 'शिवोऽहं' कहता। शंकरने उसकी यह बेवकूफ़ी दूर करनी चाही। एक रोज एक लुहारकी दुकान पर उन्होंने एक पात्रमें पिघला लोहा लिया और पी डाला। शिष्यसे बोले—'तू भी पी।' शिष्य भला यह कहाँ कर सकता था । तबसे उसने 'शिवोऽहं' कहना छोड़ दिया। रामनामकी शक्ति एक राजासे ब्रह्म-हत्या हो गई। इस घोर पापके प्रायश्चित्तके लिए वह एक ऋषिके आश्रममें गया। ऋषि तो बाहर गये हुए थे, लेकिन उनका लड़का वहाँ था। राजाकी बात सुनकर उसने कहा-'रामका नाम तीन बार लो, तुम्हारे दोपका प्रक्षालन हो जायेगा।' जब ऋषिने लौट कर प्रायश्चित्त-विधानकी बात सुनी तो रुष्ट होकर बोले-'भगवान्का नाम केवल एक बार लेनेसे असंख्य जन्मोंके पाप कट जाते हैं। तेरा विश्वास कितना कच्चा है कि तूने तीन बार नाम लेनेके लिए कहा !' सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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