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हँसकर मनमें कहता है - 'मैं तो इसको जान ले शख्स कहता है कि उसे बचा लेगा !' ईश्वर फिर जब दो भाई अपनी ज़मीनको रस्सीसे 'इधर की मेरी है, उधर की तुम्हारी ।' 'सारा विश्व तो मेरा है, लेकिन ये लोग इस हिस्से या उस हिस्सेको अपना बता रहे हैं !'
लेनेवाला हूँ और यह एक बार तब हँसता है बाँटकर एक दूसरेसे कहते हैंईश्वर हँसकर मनमें कहता है
विष्णुमय जगत्
एक साधु आनन्दमें निरन्तर मस्त रहता था । लोग उसे पागल समझते थे । एक रोज़ वह गाँवसे कुछ खाना लाया और एक कुत्तेके पास बैठकर खाने लगा । एक निवाला कुत्तेको खिलाता एक खुद खाता । दोनोंको यूँ खाते देख लोगोंको भीड़ लग गई । कुछ लोग उसे पागल कहकर हँसने लगे । इसपर वह बोला
'तुम हँसते क्यों हो ? विष्णु विष्णुके पास बैठा है । विष्णु विष्णुको खिला रहा है । तुम क्यों हँसते हो विष्णु ? जो कुछ है, विष्णु है ।'
याचना
एक सन्तको बड़ी तीव्र भूख लगने लगी, मगर खानेको कुछ नहीं था । मन कहा - 'प्रभुसे माँग लो ।' अन्तरात्मा बोला- 'विश्वासी आदमीका यह काम नहीं है ।'
मन - 'खाना न माँगो, पर धीरज तो माँग लो ।'
अन्तरात्मा - 'हाँ, धीरज मांगा जा सकता है ।'
इसपर उन्हें अपने अन्दर भगवान्की दिव्य वाणी सुनाई दी - 'धीरजका सन्त-विनोद
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