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ब्रह्मचारी उस श्रीमंतके यहां गया। वह बोला-'अरे, मैं काहेका सुखी! मेरे लड़के मेरी आज्ञा नहीं मानते। पढ़े-लिखे भी नहीं हैं। दुनियामें विद्याका मान है। उस गांवमें जो विद्वान् रहता है वह है सच्चा सुखी।' ब्रह्मचारी उस विद्वान्के पास गया। उसने कहा-'मुझे सुख कहाँ ! तमाम हड्डियाँ सुखाकर मैंने विद्या पढ़ी, पर मुझे पेट भरने लायक़ भी नहीं मिलता। अमुक गाँवमें जो नेता रहता है सुखी तो वह है।' ब्रह्मचारी उस नेताके पास गया। नेता बोला-'मुझे सुख कसे हो? मेरे पास धन है, विद्या है, कीति है, बालबच्चे हैं। सब है, पर लोग मेरी बड़ी निन्दा करते हैं। यह मुझे सहन नहीं होता। उस गाँवमें हनुमान्के मंदिरमें रहनेवाला, भिक्षा मांगकर भगवान्के भजन-उपासनामें मस्त रहनेवाला एक ब्रह्मचारी है। सचमुच सुखी आदमी कोई है तो वह है।' ब्रह्मचारी अपना ही वर्णन सुनकर शर्माया और अपनी जगह लौट आया और पूर्ववत् सुखसे रहने लगा।
द्रौपदी युधिष्ठिर द्रौपदीको जुएमें हार गये। दुर्योधनने उसे सभामें लानेका हुक्म किया। दुःशासन उसे सभामें खींचकर लाया और आज्ञा पाकर उसे नंगी करने लगा! सारी सभा चुपचाप तमाशा देखती रही। द्रौपदीने धर्मराज युधिष्ठिरसे कहा-'आप मेरी रक्षा करें ।' धर्मराज बोले'सत्य मेरा व्रत है। उसे छोड़कर मैं तेरी रक्षा नहीं कर सकता।' उसने भीमसे कहा । भीम बोले-'क्या करूँ ! यह धर्मराज मुझे कुछ करने नहीं देते। इनकी आज्ञाका उल्लंघन मैं केसे करूं ?' उसने अर्जुनकी तरफ़ देखा । अर्जुन गरदन झुकाये बैठे रहे । नकुल व सहदेव भी यूँ ही रह गये । तब उसने भगवान्को पुकारा और उन्होंने उसको लाज रखी।
सन्त-विनोद
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