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श्री नारायणप्रसादजीने, जो कि इससे पूर्व ज्ञानगंगा की दो धाराएँ प्रवाहित कर चुके हैं, ऐसे परम प्रेमानन्दकी मस्तीका विविधरंगी दर्शन इस सन्तविनोदमें कराया है । 'विष्णुमय जगत्' ( पृ० २५) में ब्रह्ममय जगत् की और 'मायावी संसार' ( पृ० ९१ ) की रूपकथा-द्वारा भ्रममय जगत्की छबि दिखलाकर उसकी बन्धनमूलक अर्वाचीन सभ्यता के भी दर्शन कराये हैं ( पृ० ९२ ) और यूँ मुक्तात्माओंके मुक्तानन्दको यहाँ मुक्त रूपसे प्रवाहित किया है और साथ ही खलील जिब्रानके इस महान् वचनको सार्थक कर दिखाया है कि
"The fresh song comes not through bars and wires"
जनमुख निवास, कांदीवली, बम्बई
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- (आचार्य) चिमन भाई दवे