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नम्रता ऐटम युगके प्रवर्तक अलबर्ट आइन्स्टीन संसारके सबसे महान् वैज्ञानिक थे।
इज़राइलके प्रेसीडेण्ट डॉक्टर चैम वैज़मैनके मरनेपर आइन्स्टीनसे प्रेसीडेण्ट पद स्वीकार करनेकी प्रार्थना की गई। लेकिन उन्होंने वहाँकी सरकारके इस प्रस्तावको अस्वीकार करते हुए कहा-'इसके लिए आपका बड़ा आभारी हूँ, मगर मैं इस पदके योग्य नहीं हूँ; क्योंकि जन-सेवा-कार्य या राजनीतिक क्षेत्रमें काम करनेके लिए मैं अपनेको ज़रा भी दक्ष या कुशल नहीं मानता।'
दुःख हकीम लुकमान महान् तत्त्वज्ञानी थे। बचपनमें वे गुलाम थे। उनके मालिकने एक बार उन्हें कड़वी ककड़ी खानेको दी। मालिकने सोचा था कि लुकमान इसे चखते ही फेंक देगा; मगर लुकमान तो बिना मुंह बनाये सारी ककड़ी खा गये !
'तू ऐसी कड़वी ककड़ी कैसे खा सका ?'
'मेरे उदार स्वामी ! आप मुझे रोज़ स्वादिष्ट चीजें प्रेमसे खिलाते हैं। और भी तरह-तरहके सुख भोगता हूँ। एक दिन आपके हाथसे कड़वी ककड़ी मिली तो आनन्दसे क्यों न खाऊँ ?' लुकमान बोले ।
वह आदमी समझदार और दयालु था। उसने लुकमानका बड़ा आदर किया और बोला-'तुमने मुझे सबक़ दिया है कि जो परमात्मा हमें तरह-तरहके सुख देता है उसके हाथसे अगर कभी दुःख भी मिले तो उसे खुशीसे भोगना चाहिए । आजसे तुम्हें गुलामीसे आज़ाद करता हूं।' ११२
सन्त-विनोद