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जीवन-चरित किसीने श्री गरुदत्त विद्यार्थीसे कहा-'आप स्वामी दयानन्दजी सरस्वतीके घनिष्ठ सम्पर्कमें रहे हैं । आप उनका एक जीवन-चरित क्यों नहीं लिख डालते ?'
'उनका जीवन-चरित लिखनेकी मैं कोशिश कर रहा हूँ।' 'कब तक पूरा होगा?' _ 'मैं उसे काग़ज़पर नहीं अपने स्वभावमें अङ्कित कर रहा हूँ,' श्री गुरुदत्तजी बोले।
सहनशीलता एक बार महात्मा गाँधी चम्पारनसे बेतिया रेलके तीसरे दर्जेमें जा रहे थे । रातको किसी स्टेशनसे एक किसान उसी डिब्बेमे चढ़ा। महात्माजोको धक्के देता हुआ बोला- 'उठकर बैठो ! तुम तो ऐसे पसरे पड़े हो जैसे गाड़ी तुम्हारे ही बापकी है।'
महात्माजी उठकर बैठ गये। पास ही किसान बैठ गया। कुछ देर बाद इत्मीनानसे गाने लगा
'धनधन गाँधीजी महाराज दुखीका दुःख मिटाने वाले।' महात्माजी उसका गीत सुनकर मुसकराते रहे ।
बेतिया स्टेशनपर महात्माजीके स्वागतके लिए हजारों लोग आये हुए थे । गाडीको स्टेशनपर पहुंचते ही आसमान जयकारोंसे गूंजने लगा। अब किसानको अपनी भूलका पता लगा। वह गाँधोजीके पैरोंपर गिर पड़ा
और फूट-फूटकर रोने लगा। महात्माजीने उसे उठाया और आश्वासन दिया।
सन्त-विनोद