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अध्याय - 5
ज्ञानगुण से कर्म-बन्ध
चहुविह अणेयभेयं बंधते णाणदंसणगुणेहिं ।
समये समये जम्हा तेण अबंधो त्ति णाणी दु||
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क्योंकि (मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ) ये चार प्रकार के द्रव्यास्त्रव ज्ञान-दर्शन गुणों के द्वारा प्रतिसमय अनेक प्रकार के कर्मों को बाँधते हैं, अतः ज्ञानी तो अबन्ध ही है।
Since the four kinds of karmic influxes (wrong belief, nonabstinence, passions, and actions of the body, the organ of speech and the mind), due to the impure qualities of knowledge and faith in the Self, cause bondages of various kinds of karmas every instant, therefore, the Self with right knowledge is free from bondage.
ज्ञानगुण कर्म- -बन्ध का कारण क्यों है
जघन्य भाव कहा गया है।
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(5-7-170)
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जम्हा दु जहण्णादो णाणगुणादो पुणो वि परिणमदि । अण्णत्तं णाणगुणो तेण दु सो बंधगो भणिदो ॥
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क्योंकि ज्ञानगुण ज्ञानगुण के जघन्य भाव ( क्षायोपशमिक ज्ञान) के कारण पुनः अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् अन्य रूप से परिणमन करता है, इसी कारण वह (ज्ञानगुण का यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति से पूर्व तक) कर्म का बन्ध कराने वाला
(5-8-171)
Since the quality of knowledge, due to its lowest stage of disposition (destruction-cum-subsidence), re-emerges, within