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अध्याय - 10
अनेक प्रकार के साधु-वेष और गृहस्थ- वेष धारण करके अज्ञानी जन यह कहते हैं कि वेष ही मोक्ष का मार्ग है; किन्तु द्रव्यलिंग मोक्ष का मार्ग नहीं है; क्योंकि अर्हन्तदेव देह से ममत्वहीन हुए (बाह्य) लिंग को छोड़कर दर्शन, ज्ञान, चारित्र का सेवन करते हैं।
Ignorant persons adopt various kinds of alleged external insignia of monks and householders and claim that adoption of these insignia leads to liberation. But external insignia cannot lead to liberation as the Omniscient Lords, discarding all external symbols, and giving up attachment to body itself, only get immersed in right faith, knowledge, and conduct.
दर्शन - ज्ञान - चारित्र मोक्षमार्ग है
ण विएस मक्खमग्गो पासंडियगिहिमयाणि लिंगाणि । दंसणणाणचरित्ताणि मक्खमग्गं जिणा विंति ।।
(10-103-410)
तम्हा जहित्तु लिंगे सागारणगारिये हि वा गहिदे । दंसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुंज मक्खपहे ॥
(10-104-411)
साधु और गृहस्थ के लिंग यह भी मोक्ष-मार्ग नहीं हैं। दर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्ष-मार्ग हैं, ऐसा जिनेन्द्रदेव कहते हैं; इसलिए गृहस्थ और साधुओं द्वारा ग्रहण किये हुए लिंगो को छोड़कर अपनी आत्मा को दर्शन, ज्ञान और चारित्रस्वरूप मोक्ष - मार्ग में लगाओ।
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